छायावाद की विशेषताएं

छायावाद की विशेषताएं – अर्थ, परिभाषा और प्रवृत्तियां

छायावाद (Ekanki Ke Tatva Bataiye): छायावाद आधुनिक हिंदी-कविता की उस धारा का नाम है, जो सन् 1918 ई. से 1936 ई. तक हिंदी-काव्य की प्रमुख प्रवृत्ति रही। वैयक्तिकता, भावुकता, काल्पनिकता, नवीन सौंदर्य बोध, प्रकृति का सूक्ष्म चित्रण, गीतात्मकता इत्यादि छायावाद की मुख्य विशेषताएँ थीं। छायावाद के नामकरण एवं परिभाषा के संबंध में बड़ा ऊहापोह है।

छायावाद का क्या अर्थ है ?

शुक्ल जी ने छायावाद का संबंध अंग्रेजी के ‘फैंटसमेटा’ (Phantasmata) से जोड़ा, नंददुलारे वाजपेयी ने इसका संबंध ‘युगबोध से जोड़ते हुए इसे आध्यात्मिक छाया का भान’ कहा। मुकुटधर पाण्डेय ने इसे कविता न मानकर उसकी छाया माना। इसी प्रकार सुशील कुमार ने इसे कोरे काग़ज की भाँति अस्पष्ट, निर्मल ब्रह्म की विशद छाया, वाणी की नीरवता इत्यादि-इत्यादि कहा।

सांकेतिक सूक्ष्म अभिव्यक्ति के कारण आज छायावाद उस सशक्त काव्यधारा के लिए प्रयुक्त होता है, जिसकी अवधि महज 18- 20 वर्ष है; पर जो जीवन और काव्य के प्रति नई दृष्टि अपनाने तथा विषय, भाव, भाषा, शिल्प के क्षेत्र में क्रांति लाने के कारण एक सशक्त आन्दोलन सिद्ध हुआ।

छायावाद की परिभाषा

(1) रामचंद्र शुक्ल – छायावाद शब्द का प्रयोग दो अर्थों में समझना चाहिये। एक तो रहस्यवाद के अर्थ में और दूसरा काव्य शैली या विशेष के व्यापक अर्थ में।

(2) डॉ. रामकुमार वर्मा – ‘जब परमात्मा की छाया आत्मा पर पड़ने लगे और आत्मा की छाया परमात्मा पर तो यही छायावाद है।’

(3) नंददुलारे वाजपेयी – ‘छायावाद मानव अथवा प्रकृति के सूक्ष्म किन्तु व्यक्त सौंदर्य में आध्यात्मिक छाया का भान है।’

(4) जयशंकर प्रसाद – कविता के क्षेत्र में पौराणिक युग की किसी घटना अथवा देश-विदेश की सुंदरी के बाह्य वर्णन से भिन्न जब वेदना के आधार पर स्वानुभूतिमयी अभिव्यक्ति होने लगे, तब हिंदी में उसे छायावाद से अभिहित किया गया।

छायावाद की विशेषताएं

हिंदी साहित्य के अंतर्गत हम छायावाद की विशेषताएं टॉपिक पर जानकारी शेयर कर रहें है

1. वैयक्तिकता –

छायावाद युग में कवियों का विषय हो गया था- ‘आत्मकथा’ और शैली ‘मैं’। पंत का ‘उच्छ्वास’, प्रसाद का आँसू, निराला के ‘विप्लवी बादल’ और ‘सरोज स्मृति’ इसी वैयक्तिकता के अग्रदूत हैं। छायावादी कविता में जिस ढंग से निजी बातें एकदम खरे रूप में कही गईं, पहले कभी नहीं।

‘मैं तो अबाध गति मरुत सदृश हूँ चाह रहा अपने मन की।’

2. नवीन सौंदर्य बोध –

छायावादी कवियों ने नारी सौंदर्य के रीतिकालीन प्रतिमानों को ध्वस्त करते हुए नारी को अपमान के पंक और वासना के पर्यंक से उठाकर देवी, प्राण और सहचरी के उच्च आसन पर प्रतिष्ठित किया। पंत ने नारी को ‘देवी, माँ, सहचरी प्राण’ कहा तो निराला ने विधवा को ‘इष्टदेव के मंदिर की पूजा-सी’ कहा। प्रसाद ने नारी को आदर्श श्रद्धा में देखा।

“नील परिधान बीच सुकुमार खुल रहा मृदुल अधखुला अंग।
खिला हो ज्यों बिजली का फूल, मेघवन बीच गुलाबी रंग।‘’ (कामायनी)

छायावादी कवियों का नवीन सौंदर्य बोध प्रकृति-चित्रण में भी परिलक्षित हुआ। पंत अपने चित्रण के लिए विशेष प्रसिद्ध हुए।

3. स्वछंद कल्पना –

यह छायावादी कवियों के व्यक्तित्व का अभिन्न अंग थी। कल्पना छायावादी कवियों के ‘मन की पाँख’ थी, वह उसकी स्वतंत्रता, मुक्ति, विद्रोह, आनंद इत्यादि आकांक्षाओं की प्रतीक थी। कल्पना छायावादी कवियों की ‘राग शक्ति’ थी, तो ‘बोध शक्ति’ भी।

4. अन्य विशेषताएँ –

भावुकता (यह छायावाद का पर्याय हो गई), जिज्ञासा (प्रथम रश्मि का आना रंगिणि तूने कैसे पहचाना), रहस्यात्मकता (निमंत्रण देता मुझको कौन?), वेदना की अभिव्यक्ति (मैं नीर भरी दुःख की बदली – महादेवी), दुःख ही जीवन की कथा रही (निराला) इत्यादि छायावाद की अन्य विशेषताएँ थीं।

5. कोमलकांत पदावली, संगीतात्मकता, चित्रात्मकता, अनूठी उपमाओं और प्रतीकों का प्रयोग छायावाद की शिल्पगत प्रवृत्तियाँ थीं। इसके अतिरिक्त छंद के क्षेत्र में मुक्तछंद का प्रयोग (जैसे-जूही की कली), अलंकार के क्षेत्र में मानवीकरण एवं विशेषण-विपर्यय इन दो नए अलंकारों का प्रयोग छायावाद की मुख्य विशेषताएँ थीं।

यथा –

1. मेघमय आसमान से उतर रही वह, संध्यासुंदरी परी सी धीरे-धीरे। (मानवीकरण)
2. तुम्हारी आँखों का बचपन ! खेलता जब अल्हड़ खेल (विशेषण विपर्यय)।

NET JRF HINDI PDF NOTES

UGC NET HINDI UNIT 8 PDF – NTA JRF Hindi Sahitya | इकाई 8 हिंदी नाटक

आज के आर्टिकल में हम आपको NTA UGC  द्वारा आयोजित NET/JRF के अंतर्गत हिंदी विषय की इकाई 8  हिंदी नाटक(UGC NET HINDI UNIT 8 PDF) के बारे में जानकारी शेयर कर रहें है

UGC NET HINDI UNIT 8 PDF – हिंदी नाटक

हिंदी नाटक

1. अंधेर नगरी, भारत दुर्दशा (भारतेन्दु हरिश्चंद्र)
2. चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, धु्रवस्वामिनी (जयशंकर प्रसाद)
3. अंधायुग (धर्मवीर भारती)
4. सिंदूर की होली (लक्ष्मीनारायण लाल)
5. आधे-अधूरे, आषाढ़ का एक दिन (मोहन राकेश)
6. आगरा बाजार (हबीब तनवीर)
7. बकरी (सर्वेश्वरदयाल सक्सेना)
8. एक और द्रोणाचार्य (शंकर शेष)
9. अंजो दीदी (उपेन्द्रनाथ अश्क)
10. महाभोज (मन्नू भंडारी)

UGC NET HINDI UNIT 9 PDF – NTA JRF Hindi Sahitya | इकाई 9 हिंदी निबंध

आज के आर्टिकल में हम आपको NTA UGC  द्वारा आयोजित NET/JRF के अंतर्गत हिंदी विषय की इकाई 9  हिंदी निबंध(UGC NET HINDI UNIT 9 PDF) के बारे में जानकारी शेयर कर रहें है

UGC NET HINDI UNIT 9 PDF – हिंदी निबंध

हिंदी निबंध

1. दिल्ली दरबार दर्पण, भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है (भारतेंदु हरिश्चंद्र)
2. शिवमूर्ति (प्रताप नारायण मिश्र)
3. शिवशंभु के चिट्ठे (बालमुकुंद गुप्त)
4. कविता क्या है (रामचंद्र शुक्ल)
5. नाखून क्यों बढ़ते है (हजारीप्रसाद द्विवेदी)
6. मेरे राम का मुकुट भीग रहा है (विद्यानिवास मिश्र)
7. मजदूरी और प्रेम (अध्यापक पूर्ण सिंह)
8. उत्तराफाल्गुनी के आस-पास (कुबेरनाथ राय)
9. उठ जाग मुसाफिर (विवेकी राय)
10. संस्कृति और सौंदर्य (नामवर सिंह)

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UGC NET Hindi Paper UNIT 10

UGC NET HINDI UNIT 10 PDF – NTA JRF Hindi Sahitya | इकाई 10 आत्मकथा, जीवनी तथा अन्य गद्य विधाएँ

आज के आर्टिकल में हम आपको NTA UGC  द्वारा आयोजित NET/JRF के अंतर्गत हिंदी विषय की इकाई 10  अन्य गद्य विधाएँ(UGC NET HINDI UNIT 10 PDF) के बारे में जानकारी शेयर कर रहें है

UGC NET HINDI UNIT 10 PDF – अन्य गद्य विधाएँ

अन्य गद्य विधाएँ

1. माटी की मूरतें (रामवृक्ष बेनीपुरी)
2. ठकुरी बाबा (महादेवी वर्मा)
3. मुर्दहिया (तुलसीराम)
4. प्रेमचंद घर में (शिवरानी देवी)
5. एक कहानी यह भी (मन्नू भंडारी)
6. आवारा मसीहा (विष्णु प्रभाकर)
7. क्या भूलूँ क्या याद करूँ (हरिवंश राय बच्चन)
8. आपहुदरी (रमणिका गुप्ता)
9. भोलाराम का जीव (हरिशंकर परसाई)
10. जामुन का पेड़ (कृष्ण चंदर)
11. संस्कृति के चार अध्याय (रामधारी सिंह दिनकर)
12. एक साहित्यिक की डायरी (मुक्तिबोध)
13. मेरी तिब्बत यात्रा (राहुल सांकृत्यायन)
14. अरे यायावर रहेगा याद? (अज्ञेय)

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प्रयोगवाद किसे कहते हैं ?

प्रयोगवाद(Prayogvad): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत प्रयोगवाद पर सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।

प्रयोगवाद किसे कहते हैं – Prayogvad Kise Kahte Hai

1943 ई. में प्रगतिवाद की अतिशय ‘सपाटबयानी’ और सीधे जीवन समस्याओं के चित्रण की एकरसता के विपरीत नये प्रयोगों का आंदोलन चला और प्रयोगवाद का सूत्रपात यहीं से हुआ। 1943 ई. में ‘अज्ञेय’ के संपादन में ‘तारसप्तक प्रथम’ के प्रकाशन के साथ ही नए प्रयोग की ओर कवि विशेष रूप से उन्मुख हुए। प्रयोगवाद का समय 1943 से 1951 ई. तक माना जाता है।

इन कवियों का काव्य के प्रति एक अन्वेषी का दृष्टिकोण था। इन्होंने नूतनता की खोज के लिए केवल की घोषणा की थी इसलिए इसे ‘प्रयोगवाद’ कहा गया। हालांकि इसका विरोध भी होता रहा।

दूसरा सप्तक (1951 ई.) में प्रकाशन के साथ ही ‘अज्ञेय’ ने उस समय की कविता को प्रयोगवाद न कहकर ‘नई कविता’ कहा – “प्रयोग का कोई वाद नहीं है, हम वादी नहीं रहे, नहीं हैं।” इस प्रकार प्रयोगवाद ही संतुलन की खोज में नई कविता हो जाता है। दूसरे शब्दों में प्रयोगवादी कविता का स्वाभाविक विकास नई कविता है।

प्रयोगवाद के कवि और उनकी रचनाएँ

कवि रचनाएँ
अज्ञेय भग्नदूत, चिंता, इत्यलम् ‘हरी घास पर क्षणभर, बावरा, अहेरी
भवानी प्रसाद मिश्र गीतफरोश
गिरिजा कुमार माथुर मंजीर, नाश और निर्माण, धूप के धान
धर्मवीर भारती ठंडा लोहा, अंधा युग।
नरेश कुमार मेहता संशय की एक रात।

इसके अतिरिक्त अन्य कवि नेमिचंद्र जैन, भारत भूषण अग्रवाल, शमशेर बहादुर सिंह इत्यादि है।

प्रयोगवाद की विशेषताएँ

1. अहंवाद – किंतु हम हैं नदी के द्वीप,
हम धारा नहीं हैं। (अज्ञेय)

2. दुःख का महत्त्व स्वीकार्य – दुःख सबको माँजता है।
चाहे वह स्वयं को मुक्ति देना न जाने किंतु जिनको माँजता है उन्हें यह सीख देता है कि सबको मुक्त रखें। (अज्ञेय)

3. यथार्थ का आग्रह (प्रकृति – चाँदनी)
वंचना है चाँदनी
झूठ वह आकाश का निरवधि गहन विस्तार (अज्ञेय)।

4. निराशावादिता –
मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ, लेकिन मुझे फेंको मत। (धर्मवीर भारती)

5. कलापक्ष – प्रयोगवादी कवियों की भाषा-शैली हिंदीनिष्ठ थी, जिनमें आंचलिक शब्दों का प्रयोग भी समाहित है। छायावादी काव्य प्रायः छंदोबद्ध है; प्रयोगवादी काव्य निर्बंध। छायावाद तुकांत है; प्रयोगवाद अतुकांत। छायावाद शब्दलय का आग्रही है; प्रयोगवाद अर्थलय का। प्रयोगवाद में प्रगीत तत्त्व है। प्रयोगवाद में 2 पंक्तियों तक की कविता लिखी गई – घंटारव। घंटारव (शमशेर बहादुर)।
प्रयोगवादी कविता पर ‘साधारणीकरण के अभाव (डॉ. नगेन्द्र, नंददुलारे वाजपेयी इत्यादि) का आरोप लगाया जाता है। शिवदानसिंह ने प्रयोगवाद को पाश्चात्य साहित्य के प्रतीकवाद का अनुकरण मात्र कहा है।

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रीतिमुक्त काव्यधारा किसे कहते हैं ?

रीतिमुक्त काव्यधारा(Ritimukt Kavya Dhara): आज के आर्टिकल में हम गद्य विधा में रीतिमुक्त काव्यधारा पर जानकारी शेयर करेंगे।

रीतिमुक्त काव्यधारा – Ritimukt Kavya Dhara

ऐसा काव्य जो अलंकार, रस, गुण, ध्वनि, नायिका-भेद इत्यादि काव्यशास्त्रीय प्रणाली पर रचा जाये, वह रीतिकाव्य कहलाता है। रीतिकाव्य को 3 भागों में बाँटा गया है –

  • रीतिबद्ध
  • रीतिसिद्ध
  • रीतिमुक्त

रीतिमुक्त काव्य क्या है – Ritimukt Kavya Kya Hai

रीतिमुक्त काव्य का आशय उस काव्य से है, जिसमें कवियों ने लक्षण-ग्रंथ न लिखकर स्वच्छंद रीति से अपने भावों की व्यंजना कीं।

रीतिमुक्त का सीधा-साधा अर्थ भी यही है कि यह धारा रीति-परंपरा के साहित्य बंधनों और रूढ़ियों से सर्वथा मुक्त थी। इसे ही कतिपय विद्धानों ने ‘स्वच्छंद-काव्यधारा’ भी कहा है। स्वच्छंद का अर्थ है – बाह्यबंधनों अर्थात् रीति के बंधनों से मुक्त।

रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवि

  • घनानंद
  • बोधा
  • आलम
  • द्विजदेव
  • ठाकुर
  • शीतल

रीतिमुक्त काव्यधारा की विशेषताएं

(1) आत्मप्रधान एवं व्यक्ति प्रधान काव्य – रीतिमुक्त काव्य आत्मप्रधान एवं व्यक्तिपरक काव्य है। रीतिमुक्त कवियों ने काव्य में रीति, रूढियों का तिरस्कार कर स्वछंद मार्ग अपनाते हुए आत्मपरक दृष्टिकोण की प्रतिष्ठा की। इन्होंने कविता को सायास न मानकर आवेश प्रेम के आवेग का सहज उच्छलन माना। घनानंद कहते हैं कि –

लोग हैं लागि कवित्त बनावत, मोहि तो मेरे कवित्त बनावत’।

(2) स्वछंद प्रेम – रीतिमुक्त कवियों का प्रेम स्वछंद प्रेम है, जो एकनिष्ठ एवं एकांगी है। वह एक ओर भक्ति की सांप्रदायिकता से मुक्त है, तो दूसरी न और समाज के रीति-नियमों से। घनानंद, बोधा, आलम जैसे कवियों ने हिंदू होते हुए भी मुस्लिम युवतियों क्रमशः सुजान, शेख, सुभान से प्रणय संबंध स्थापित कर स्वछंदतावादिता का परिचय दिया। इन्होंने प्रेम की प्रेरणा से राज्याश्रय, समाज, धर्म इत्यादि सभी को ठुकरा दिया। बोधा अपनी प्रेयसी के लिए संसार के समस्त वैभव को ठुकराने की बात कहते हैं –

‘’एक सुभान के आनन पै कुरबान जहाँ लगि रूप जहाँ को।‘’

प्रेम की इस अनन्यता के कारण रीतिमुक्त कवियों के प्रेम में कोरी रसिकता, भावुकता, कामुकता इत्यादि न होकर संघर्ष, त्याग एवं साहस की भावना है।

(3) रीतिमुक्त कवियों का प्रेम व्यथाप्रधान है। यहाँ संयोग में भी वियोग पीछा नहीं छोड़ता है –

‘’यह कैसी संयोग न बुझि न परै कि। वियोग न क्यों हू बिछोहत है।‘’

इस प्रेम की पीर को समझने के लिए हृदय की आँखें चाहिए –

‘’समुझे कविता घनानंद की हिय आँखिन नेह की पीर तकी।‘’

(4) नारी के प्रति अत्यंत सम्मानपूर्ण दृष्टिकोण एवं परिष्कृत रुचि का परिचय रीतिमुक्त कवियों ने दिया है –

‘’अंग-अंग तरंग उठे द्युति की, परि है मनो रूप अबै घट च्वै।‘’ (घनानंद)

(5) रीतिमुक्त काव्य भावप्रधान अधिक है, रूपप्रधान कम। इनकी काव्य शैली पर जानबूझकर अलंकारों का जामा नहीं पहनाया गया है। इनकी भाषा प्रौढ़ ब्रज है और शैली मुक्तक है।

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रीतिसिद्ध काव्य धारा क्या है ?

रीतिसिद्ध काव्य धारा क्या है(Riti Siddh Kavya Dhara): आज के आर्टिकल में हम गद्य विधा में रीतिसिद्ध काव्य धारा पर जानकारी शेयर करेंगे।

रीतिसिद्ध काव्य धारा – Riti Siddh Kavya Dhara

ऐसा काव्य जो अलंकार, रस, गुण, ध्वनि, नायिका-भेद इत्यादि काव्यशास्त्रीय प्रणाली पर रचा जाये, वह रीतिकाव्य कहलाता है। रीतिकाव्य को 3 भागों में बाँटा गया है – (i) रीतिबद्ध (ii) रीतिसिद्ध और (iii) रीतिमुक्त।

रीतिसिद्ध काव्य धारा क्या है ?

रीतिकाव्यधारा की 3 कोटियों में एक कोटि ‘रीतिसिद्ध काव्य’ से अभिप्राय ऐसे काव्य से है, जिसमें लक्षण तो नहीं मिलते हैं; किंतु इनमें काव्यशास्त्रगत सभी विशेषताएँ समाविष्ट हैं। रीतिसिद्ध कवियों ने लक्षणग्रंथ तो नहीं लिखा, परंतु उनका आधार लेते हुए उत्कृष्ट रचनाएँ कीं।

रीतिसिद्ध काव्य वह है जिनमें लक्षण तो नहीं मिलता, परंतु उनमें रीतिकालीन परंपराओं का पूरा निर्वाह हुआ है तथा उसमें भावपक्ष एवं कलापक्ष का पूरा समन्वय है।

रीतिसिद्ध काव्य धारा के कवि – Riti Siddh Kavya Dhara ke Pramukh Kavi

  • बिहारीलाल (सर्वोपरि)
  • बेनी
  • रसनिधि
  • विक्रमसाहि
  • राजा मानसिंह
  • रामसहाय

रीतिबद्ध काव्यधारा की विशेषताएं

(1) शृंगारिकता – रीतिसिद्ध कवि बिहारी श्रृंगारिक कवि थे। उनका श्रृंगार वर्णन अनूठा था। उन्हें संयोग श्रृंगार में जितनी सफलता मिली है।

वियोग श्रृंगार में नहीं –

बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय। (संयोग श्रृंगार)

सौंह करे, भौंहन हँसे, देन कहे नटि जाई।।

(2) भक्ति-नीति – बिहारी का काव्य श्रृंगार, भक्ति एवं नीति की त्रिवेणी है। बिहारी सतसई का यह (मंगलाचरण) दोहा उनकी भक्ति का विशिष्ट दोहा है –

मेरी भव बाधा हरी, राधा नागरि सोय।

जा तन की झाईं परै, स्याम हरित दुति होय।।

रीतिसिद्ध कवियों में बेनी, बिहारी इत्यादि ने उत्कृष्ट नीति-काव्य भी लिखा है।

नहिं पराग, नहिं मधुर मधु नहिं विकास, इहि काला

अली कली ही सौं बंध्यो आगे कौन हवाल।

(3) ब्रजभाषा का प्रयोग, काव्य का स्वरूप मुक्तक, समासोक्ति शैली का प्रयोग, शब्द योजना में नाद-सौंदर्य, अलंकारों का बहुल प्रयोग दोहा छंद इत्यादि रीतिसिद्ध काव्य के सिरमौर कवि बिहारी के कलापक्ष की मुख्य विशेषताएँ थीं।

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निबंध की शैली कितने प्रकार की होती है ?

निबंध की शैलियाँ(Nibandh ki Shailiyan): आज के आर्टिकल में हम गद्य विधा में हिंदी निबंध की शैलियाँ पर जानकारी शेयर करेंगे।

निबंध की शैलियाँ – Nibandh Ki Shailiyan

हिंदी निबंध की प्रमुख शैलियाँ समास शैली, व्यास शैली, तरंग शैली, धारा शैली ,विक्षेप और प्रलाप शैली होती है हिंदी निबंध के मुख्यत: पांच तत्त्व होते है।

हिंदी निबंधों की 5 प्रमुख शैलियाँ हैं –

  1. समास शैली
  2. व्यास शैली
  3. तरंग शैली
  4. धारा शैली
  5. विक्षेप एवं प्रलाप शैली

(1) समास शैली

समास प्रधान शैली वह होती है, जिसमें विचारों के विस्तार को संक्षिप्त रूप में प्रकट किया जाता है। इसमें वाक्य सुगठित, परिमार्जित तथा भावविचार सुगुम्फित एवं अलंकृत होता है। विचारात्मक निबंधों में इस शैली का प्रयोग होता है। शुक्ल जी के मनोविकारों से संबंधित निबंधों (यथा—लज्जा, ग्लानि, उत्साह, लोभ- प्रीति इत्यादि) में इस शैली के दर्शन होते हैं।

(2) व्यास शैली

व्यास प्रधान शैली वह होती है, जिसमें विचारों एवं भावों को सरल-सहज शब्दावली में समझा-बुझाकर प्रस्तुत किया जाता है। सुबोधता एवं प्रसाद गुण इस शैली की मुख्य विशेषता है। वर्णनात्मक एवं विवरणात्मक निबंधों में व्यास शैली अपनायी जाती है।

(3) तरंग शैली

तरंग शैली में भाव लहराते हुए से प्रतीत होते हैं। तरंग की भाँति वे उठते और गिरते प्रतीत होते हैं। यह धारा शैली एवं विक्षेप शैली के बीच की शैली है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का मत है। कि “वह भावाकुलता की उखड़ी खड़ी शैली है, जिसका मुख्य गुण पाठकों के हृदय को आंदोलित करना भर है।”

हजारी प्रसाद द्विवेदी के ललित निबंधों (कल्पलता, अशोक के फूल) तथा डॉ. रघुवीर सिंह की ‘शेष स्मृतियाँ’ कृति में इस शैली का सुंदर प्रयोग मिलता है।

(4) धारा शैली

भावनात्मक एवं ललित निबंधों में धारा शैली का प्रयोग होता है। धारा शैली में भावों की धारा निरंतर प्रवाहमान होकर प्रायः एक गति से चलती है। वस्तुतः, इसमें भावना का आवेग समान स्तर और समान गति में विन्यस्त होता है। सरदार पूर्ण सिंह के निबंध (मजदूरी और प्रेम, सच्ची वीरता, आचरण की सभ्यता) इस शैली के उदाहरण है।

(5) विक्षेप एवं प्रलाप शैली

विक्षेप एवं प्रलाप शैली का प्रयोग आत्मपरक एवं भावात्मक निबंधों में होता है। विक्षेप शैली में भावों की धारा कुछ-कुछ उखड़ती हुई रहती है। इसमें तारतम्य एवं नियंत्रण का अभाव रहता है। प्रलाप शैली की भावाभिव्यक्ति में तीव्रता के साथ-साथ कुछ रूक्षता भी रहती है।

अन्य शैली इन प्रमुख शैलियों के अतिरिक्त हिंदी निबंध में व्यय शैली (बालकृष्ण भट्ट, बालमुकुन्द गुप्त, हरिशंकर परसाई), आलोचनात्मक शैली (आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी), आलंकारिक शैली, प्रतीकात्मक, बिम्बात्मक, चित्रात्मक, संवाद शैली इत्यादि विविध शैलियां प्रयोग में लायी जाती हैं।

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निबंध के तत्व कितने होते हैं ?

निबंध के तत्व(Nibandh ke Tatva): आज के आर्टिकल में हम गद्य विधा में निबंध के तत्व पर जानकारी शेयर करेंगे। निबंध के प्रमुख तत्त्व वैचारिकता, वैयक्तिकता ,शैली, और समाहारिता होते है।

निबंध के तत्व – Nibandh ke Tatva

निबंध के वैसे कोई सर्वसामान्य तत्त्व निर्धारित नहीं किये जा सकते जैसे कि साहित्य की अन्य विधाओं के तत्त्व स्पष्ट रूप से निर्धारित हो जाते हैं।

निबंध-सृजन के निम्नांकित तत्त्व हो सकते हैं –

  1. वैचारिकता
  2. वैयक्तिकता
  3. शैली
  4. समाहारिता

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(1) वैचारिकता

वैचारिकता निबंध का प्रथम तत्त्व है। निबंध में जिस विचार तत्त्व की प्रधानता होती है, वह विचार तत्त्व भाव का स्पर्श लिए हुए होता है। निबंध की वैचारिकता निबंधकार की आत्मगत वैचारिकता होती है।

(2) वैयक्तिकता

वैयक्तिकता को निबंध का द्वितीय मुख्य तत्त्व कहा जा सकता है। निबंध का मूलाधार यदि विचार है तो विचार का मूलाधार निबंधकार की वैयक्तिकता है। निबंध में वैयक्तिकता से अभिप्राय निबंधकार का वह विषयगत रूप है जो उसके पूरे वैचारिक धरातल पर खड़ा है।

(3) शैली

निबंध में जितना महत्त्व वैचारिकता और वैयक्तिकता का है, उतना ही महत्त्व शैली का भी है। साहित्य की सभी विधाओं में निबंध एक ऐसी विधा है जो पूर्णतया शैली आश्रित है। उत्कृष्ट शैली का मुख्य आधार शब्द चयन और अद्भुत कसाव है, जिसके आधार पर निबंध एक सुगठित रचना बनता है।

(4) समाहारिता

समाहारिता निबंध का एक प्रमुख तत्त्व है। यह समाहार वैचारिकता, वैयक्तिकता और शैली की सानुपातिकता का दूसरा नाम है। निबंध लेखन में निबंधकार की एक आँख निरन्तर तात्त्विक समाहार पर टिकी रहनी चाहिए, नहीं तो निबंध ‘उच्छृंखल बुद्धि विलास’ बनकर रह जायेगी।

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ललित निबंध किसे कहते है ?

ललित निबंध किसे कहते है(Lalit Nibandh Kise Kahate Hain): आज के आर्टिकल में हम गद्य विधा में ललित निबंध पर जानकारी शेयर करेंगे।

ललित निबंध किसे कहते है – Lalit Nibandh Kise Kahate Hain

विगत कुछ वर्षों में निबंध के ही कलात्मक रूप पर विशेष देते बल हुए ललित निबंधों की रचना हुई, जिनमें विषयवस्तु एवं विचारों के सुव्यवस्थित प्रतिपादन के स्थान पर निजी चिंतन एवं अनुभूति को स्वच्छंदतापूर्वक ललित शैली में व्यक्त किया गया। शैली के लालित्य के कारण ही इन्हें ललित निबंध कहा जाता है।

ललित निबंध की विशेषताएँ

ललित निबंध की विशेषताएँ निम्न हैं –

  • ललित निबंध में विचार की अपेक्षा अनुभूति का महत्त्व होता है।
  • कल्पना की प्रधानता पर बल होता है न कि तथ्य पर।
  •  विषयवस्तु के प्रतिपादन के स्थान पर आत्मव्यंजना का आग्रह ललित निबंध की मुख्य विशेषता है।
  • शैली में लालित्य होता है।

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हिंदी के प्रमुख ललित निबंधकार

हिंदी के प्रमुख ललित निबंधकारों में निम्नांकित प्रमुख हैं –

  • कुबेरनाथ राय – प्रिय नीलकंठी, निषाद योग, निषाद बाँसुरी, कामधेनु
  • विद्या निवास मिश्र – तुम चंदन हम पानी, मेरे राम का मुकुट भीग रहा है।
  • कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर – जिंदगी मुस्कराई, दीपजले शंख बजे।
  • हजारी प्रसाद द्विवेदी – कल्पलता, अशोक के फूल निबंध संग्रह।

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