नायक कितने प्रकार के होते हैं ?

नायक कितने प्रकार के होते हैं (Nayak Kitne Prakar Ke Hote Hai): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत नायक के प्रकार के बारे में सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।

नायक कितने प्रकार के होते हैं ?

नायक के 4 प्रकार होते हैं –

1. धीरोदात्त

2. धीरललित

3. धीर प्रशांत

4. धीरोद्धत्त

(1) धीरोदात्त – वह नायक जिसका अंतःकरण शोक, क्रोध इत्यादि से अविचलित रहता है। वह गंभीर, क्षमावान, अहंकारशून्य, वचनपालक, विनयी, उदारचरित वाला होता है। जैसे—राम, युधिष्ठिर।

(2) धीरललित – कला आसक्त, सुखान्वेषी, कोमल एवं निश्चित स्वभाव वाला नायक। जैसे—उदयन (स्वप्नवासवदत्तम्) श्रीकृष्ण (चंद्रावली नाटक)।

(3) धीर प्रशांत – शांत स्वभाव वाला, सामान्य गुणों से युक्त ब्राह्मण अथवा वैश्यादिक नायक। जैसे—मृच्छकटिक का नायक चारुदत्त।

(4) धीरोद्धत्त – मायावी, अहंकारी, उग्र, चपल, धोखेबाज, आत्म प्रशंसक। जैसे—रावण, मेघनाद, मेघनाद, परशुराम।

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नाटक और गीति नाटक में अंतर बताइए ?

नाटक और गीति नाटक में अंतर बताइए (Natak Aur Geeti Natak Mein Antar Bataiye): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत नाटक और गीति नाटक में अंतर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।

नाटक और गीति नाटक में अंतर बताइए ?

नाटक और गीति नाट्य में मुख्य अंतर संवाद का होता है। नाटक के संवाद गद्य में और गीति नाट्य के संवाद पद्य में या लयात्मक कविता के रूप में होते हैं। काव्य के प्रयोग से गीति नाट्यों में भावावेग की तीव्रता और कल्पना की झंकार का वातावरण उत्पन्न होता है। उस काव्यात्मक विशेषता के अतिरिक्त गीति नाट्य का रूपबंध और रचना रूढ़ियाँ नाटक की होती हैं।

गीति नाट्य के कुछ उदाहरण हैं –

अंधायुग-धर्मवीर भारती। मत्स्यगंधा-उदयशंकर भट्ट।
एक कंठ विषपायी-दुष्यंत कुमार। स्वर्णश्री-गिरिजा कुमार माथुर।

हिंदी में गीति नाट्य-परंपरा का श्रीगणेश जयशंकर प्रसाद के ‘करुणालय’ से हुआ। यह हिंदी गीति नाट्य की प्रथम रचना है तो मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘अनघ’ द्वितीय गीति नाट्य है।

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नाटक एवं एकांकी में अंतर बताइए ?

नाटक एवं एकांकी में अंतर बताइए (Natak Avn Ekanki Mein Antar Bataiye): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत नाटक एवं एकांकी में अंतर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।

नाटक एवं एकांकी में अंतर बताइए ?

1. नाटक में जीवन का विस्तार, लंबाई और परिधि का विस्तार होता है; जबकि एकांकी में जीवन की किसी एक घटना, प्रसंग या पहलू को चित्रित किया जाता है। एकांकी की परिधि सीमित तथा क्षेत्र भी सीमित होता है।

2. नाटक में संकलन-त्रय का निर्वाह आवश्यक नहीं किन्तु एकांकी में संकलनत्रय का निर्वाह होना महत्त्वपूर्ण है।

3. नाटक में 5 से 10 तक अंक होते हैं जबकि एकांकी में मात्र 1 अंक।

4. एकांकी प्राय: संघर्ष स्थल से प्रारम्भ होता है, जो शीघ्र गति पकड़कर लक्ष्य की ओर दौड़ता है अर्थात् एकांकी में वेग संपन्न प्रवाह का महत्त्व होता है जबकि नाटक की गति धीमी होती है और वह धीरे-धीरे चरम सीमा (Climax) की ओर अग्रसर होता है।

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संस्मरण से आप क्या समझते हैं ?

संस्मरण से आप क्या समझते हैं (Sansmaran Se Aap Kya Samajhte Hain): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत संस्मरण पर सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।

संस्मरण से आप क्या समझते हैं ?

‘संस्मरण’ (Sansmaran) शब्द की व्युत्पत्ति स्मृ (धातु) + सम् (उपसर्ग) + ल्युट् (अन्) प्रत्यय के योग से हुई है। इसका शाब्दिक अर्थ है – सम्यक् अर्थात् संपूर्ण रूप से स्मरण करना। डॉ. अमरनाथ ने लिखा है कि – “संस्मरण एक ऐसी स्मृति है, जो वर्तमान को अधिक सार्थक, समृद्ध और संवेदनशील बनाती है।

संस्मरण (Sansmaran) मूलतः अतीत एवं वर्तमान के बीच एक सेतु है। समय सरिता के दो तटों के बीच संवाद का माध्यम है – संस्मरण। यह एक संबंध चेतना है, जो एक तरफ स्मरणीय को आलोकित करती है तो दूसरी तरफ संस्मरणकार को भी अपने मूल्यांकन का अवसर देती है। समय के धुंध में ओझल होती जिंदगी को पुनर्नृजित करने की आंतरिक आकांक्षा में ही संस्मरण के बीज निहित होते हैं। संबंधों की आत्मीयता एवं स्मृति की परस्परता ही संस्मरण की रचना-प्रक्रिया का मूल आधार है।

डॉ. रामचंद्र तिवारी के शब्दों में – “संस्मरण किसी स्मर्यमाण की स्मृति का शब्दांकन है। वस्तुतः, संस्मरण अपने संपर्क में आये किसी व्यक्ति, वस्तु, प्राणी इत्यादि का स्मृति के आधार पर वह चित्रोपम गाथा है, जो संस्मरणकार के रागात्मक लगाव, निजी अनुभूतियों एवं संवेदनाओं के आधार पर कथात्मक रूप में संस्मरण का आकार ग्रहण करती है।

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रेखाचित्र से आप क्या समझते हैं ?

रेखाचित्र से आप क्या समझते हैं (Rekhachitra Se Aap Kya Samajhte Hain): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत रेखाचित्र पर सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।

रेखाचित्र से आप क्या समझते हैं ?

रेखाचित्र (Rekha Chitra) का अंग्रेजी पर्याय ‘स्केच’ (Sketch) है, जिसका अर्थ चित्रकला से है। ‘चित्रकला में जिस प्रकार रेखाओं के माध्यम से दृश्य या रूप को उभार दिया जाता है, उसी प्रकार जब साहित्य में शब्दों के माध्यम से दृश्य या रूप को उभारा जाता है, उसे रेखाचित्र कहते हैं।” ‘रेखाचित्र’ गद्य की गौण विधा है, जिसे ‘शब्द चित्र’ के नाम से भी जाना जाता है।

रेखाचित्र के प्रमुख तत्त्व –

1. रेखाचित्र शब्दों के माध्यम से चित्र प्रधान लेखन है। अतः ‘चित्रात्मकता’ रेखाचित्र की आत्मा एवं मूलभूत तत्त्व है।

2. रेखा चित्र का थीम या प्लॉट कोई व्यक्ति, वस्तु या घटना हो सकती है। अतः, ‘कस्थावस्तु’ रेखाचित्र का अनिवार्य तत्त्व है।

3. रेखाचित्र व्यक्ति के चरित्र का व्यंजक होता है। अतः, ‘पात्र का चरित्रोद्घाटन’ रेखाचित्र का एक प्रमुख तत्त्व है।

4. रेखाचित्र भाव प्रधान लेखन है, जिसमें वर्णनात्मकता की प्रधानता होती है। भाव-व्यंजना एवं वर्णनात्मक रेखाचित्र का अन्य
मुख्य तत्त्व है।

5. रेखाचित्र में शब्दों के माध्यम से व्यक्ति-विशेष का चरित्र उकेरा जाता है। अतः, कलात्मकता-शब्द-संयोजन, शैली में संक्षिप्तता, सांकेतिकता, जीवंतता, प्रभावोत्पादकता इत्यादि रेखाचित्र का एक अन्य मुख्य तत्त्व है।

6. ‘रेखाचित्र’ सोद्देश्य रचना होती है। अतः, उद्देश्य रेखाचित्र का अन्य तत्त्व है।

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रिपोर्ताज क्या है ?

रिपोर्ताज क्या है (reportaj kya hai): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत रिपोर्ताज पर सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।

रिपोर्ताज क्या है ?

‘रिपोर्ताज’ अंग्रेजी शब्द ‘रिपोर्ट’ (Report) का समानार्थी फ्रांसीसी भाषा का शब्द है। ‘रिपोर्ताज'(Reportaj) का संबंध ‘रिपोर्ट’ से है। अमरनाथ के अनुसार – “घटना का यथातथ्य वर्णन रिपोर्ताज का प्रमुख लक्षण है परन्तु रिपोर्ट के कलात्मक और साहित्यिक रूप को ही ‘रिपोर्ताज’ कहते हैं। तात्पर्य यह है कि “रिपोर्ताज’ ऐसी रिपोर्ट है जिसमें साहित्यिकता एवं कलात्मकता का समावेश होता है।” बहुत से साहित्यकारों की यह मान्यता है कि ‘रिपोर्ताज’ में भावना का आवेग होता है, जो मनुष्य के संघर्ष को देखकर जन्म लेता है।

रिपोर्ताज का जन्म 1936 ई. में हुआ। इसके जन्मदाता अमेरिकी लेखक इलिया एहटेनबर्ग हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका के अनेक रिपोर्ताज इनके द्वारा लिखे गये, फलस्वरूप रिपोर्ताज का उदय हुआ। हिंदी में रिपोर्ताज का जन्म ‘रूपाभ’ पत्रिका में प्रकाशित शिवदान सिंह की ‘लक्ष्मीपुरा में’ (1938) रचना से माना जाता है। तूफानों के बीच (1946, रांगेय राघव), पहाड़ों में प्रेममय संगीत (1955, उपेन्द्रनाथ अश्क), गरीब और अमीर पुस्तकें (1958, रामनारायण उपाध्याय), ऋण जल धन जल (1975, फणीश्वरनाथ रेणु), बाढ़, बाढ़, बाढ़ (विवेकी राय), फाइटर की डायरी (2013, मैत्रेयी पुष्पा) हिंदी के कुछ प्रमुख रिपोर्ताज हैं।

आंचलिक उपन्यास किसे कहते हैं ?

आंचलिक उपन्यास किसे कहते हैं (Anchalik Upanyas Kise Kahate Hain): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत आंचलिक उपन्यास पर सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।

आंचलिक उपन्यास किसे कहते हैं ?

अंचल विशेष को लेकर लिखा गया उपन्यास ‘आंचलिक उपन्यास’ (Anchalik Upanyas) है। आंचलिक उपन्यास अंचल के समग्र जीवन का वह उपन्यास है, जिसमें अंचल विशेष के लोगों के रहन-सहन, खान-पान, भाषा-लहजा, पहनावा- ओढ़ावा, मनोवृत्ति, रोमांस, धर्म, आधिदैविक चेतना, झाड़-फूँक, तंत्र- मंत्र, जादू-टोना में विश्वास, आंचलिक बोली-भाषा तथा लोकगीत का अद्भुत पुट रहता है।

आंचलिक उपन्यास में अंचल का समग्र जीवन ही उपन्यास का नायक होता है और इसमें उपन्यास के पात्रों के साथ-साथ परिवेश भी बोलता है। आंचलिक उपन्यास का उद्देश्य स्थिर स्थान पर गतिमान समय में जीते हुए अंचल के व्यक्तित्व के समग्र पहलुओं का उद्घाटन करना होता है।

आंचलिक उपन्यास के जन्मदाता फणीश्वरनाथ रेणु हैं। 1954 ई. में रचित उनकी रचना ‘मैला आँचल’ आंचलिक उपन्यासों की सृजन-यात्रा का प्रारम्भ है। ‘मैला आँचल’ पूर्णिया जिले (बिहार) के ‘मेरीगंज’ अंचल की मैली जिंदगी का वह दस्तावेज है, जिसमें फूल भी हैं, शूल भी हैं, धूल भी हैं, गुलाल भी, कीचड़ भी, चंदन भी, सुंदरता भी है, कुरुपता भी। अपने दूसरे आंचलिक उपन्यास ‘परती परिकथा’ में रेणु जी ने बिहार के ‘परानपुर’ गाँव की समग्रता एवं मुख्यतः भूमि की समस्या (लैंड सर्वे, चकबंदी, जमींदारी प्रथा इत्यादि) को कथानक बनाया है।

हिंदी के अन्य आंचलिक उपन्यासों में लोक-परलोक (उदयशंकर भट्ट), नेपाल की बेटी (बलभद्र ठाकुर), कब तक पुकारूँ (रांगेय राघव), सती मैया का चौरा (भैरव प्र. गुप्त), आधा गाँव (राही मासूम रजा), कोहबर की शर्त (केशव प्र. मिश्र), बोरीबाला से बोरीबंदर तक (शैलेश मटियानी), जंगल के फूल (राजेन्द्र अवस्थी) इत्यादि प्रमुख हैं।

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नवगीत से आप क्या समझते हैं ?

नवगीत से आप क्या समझते हैं (Navgeet Se Aap Kya Samajhte Hain): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत नवगीत पर सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।

नवगीत से आप क्या समझते हैं ?

‘नई कविता’ के नाम के आधार पर ‘नवगीत’ (Navgeet) का नामकरण हुआ। छायावादी कविता की प्रणय भावना, काल्पनिकता, राष्ट्रीयता, रहस्यवादिता, मांसलता एवं संगीतात्मकता की प्रतिक्रिया स्वरूप ‘नवगीत’ का उदय हुआ।

नवगीत के प्रमुख कवि

  • ठाकुर प्रसाद सिंह
  • पुष्पा राही
  • हरीश भादानी
  • देवेन्द्र कुमार
  • महेन्द्र भटनागर
  • वीर सक्सेना

इन नवगीतकारों ने नवगीत काव्यधारा के विकास एवं प्रवर्तन में अमूल्य योगदान दिया।

नवगीत की विशेषताएँ –

1. प्रेम, सौंदर्य, प्रकृति, भावुकता इत्यादि प्रमुख वर्ण्य-विषय।
2. लोकजीवन की अनुभूति।
3. यथार्थ से साक्षात्कार।
4. अंतरंग अनुभूति।
5. सामाजिक, राजनीतिक चेतना।
6. महानगरीय संत्रास की अभिव्यक्ति।
7. नवीन शिल्प।
8. गेयता

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समानांतर कहानी क्या है ?

समानांतर कहानी क्या है (Samanantar Kahani Kya Hai): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत समानांतर कहानी पर सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।

समानांतर कहानी क्या है ?

अकहानी आंदोलन की प्रतिक्रियास्वरूप सन् 1971 में कमलेश्वर के द्वारा समानांतर कहानी आंदोलन का प्रवर्तन हुआ। उन्होंने अकहानीकारों की ‘अय्याश प्रेतों का विद्रोह’ शीर्षक लेखमाला में तीव्र आलोचना की। ‘समानांतर’ से कमलेश्वर जी का अभिप्राय कहानी को आम आदमी के जीवन की परिस्थितियों एवं समस्याओं के समानांतर प्रतिष्ठापन से है। समानांतर कहानीकारों में कमलेश्वर के अतिरिक्त जितेन्द्र भाटिया, धमेन्द्र गुप्त, मणिमधुकर, मृदुला गर्ग, हिमांशु जोशी इत्यादि मुख्य हैं।

समानांतर कहानी की विशेषताएँ –

1. समानांतर कहानी में मध्यवर्गीय और निम्नवर्गीय समाज की विभिन्न स्थितियों, विषमताओं एवं समस्याओं का अंकन सूक्ष्मतापूर्वक हुआ।

2. इसमे पुरुष-नारी के संबंधों का स्वरूप एवं संतुलित चित्रण किया गया।

3. समानान्तर कहानी में शासन और राजनीति के दुर्बल पक्षों का भी उद्घाटन हुआ।

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नई कविता की विशेषताएँ

नई कविता की विशेषताएँ (Nai Kavita Ki Visheshtaen): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत नई कविता की विशेषताओं पर सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।

नई कविता की विशेषताएँ

सन् 1943 ई. में अज्ञेय के नेतृत्व में हिंदी-कविता के क्षेत्र में एक नये आंदोलन का प्रवर्तन हुआ, जिसे प्रयोगवाद, प्रपद्यवाद, नई कविता इत्यादि विभिन्न संज्ञाओं से विभूषित किया गया। छठा दशक नई कविता (Nai Kavita) का दशक है। नई कविता वस्तुतः 1953 ई. में ‘नये पत्ते’ के प्रकाशन के साथ विकसित हुई।

1952 ई. में अज्ञेय ने आकाशवाणी पटना की भेंटवार्ता में ‘नई ‘कविता’ शब्द का प्रयोग किया था। जगदीश गुप्त और रामस्वरूप चतुर्वेदी द्वारा संपादित संकलन ‘नयी कविता’ (1954) में यह सर्वप्रथम अपने समस्त प्रतिमानों के साथ सामने आई। कई विद्वानों ने भारतीय स्वतंत्रता- प्राप्ति के पश्चात् लिखी गई कविता को ‘नई कविता’ कहा है।

नई कविता की विशेषताएँ (Nai Kavita Ki Visheshtaen) इस प्रकार हैं –

1. सभी वादों से मुक्ति –

नई कविता (Nai Kavita) का कोई वाद नहीं है, जो अपने कथ्य एवं दृष्टि से सीमित हो। कथ्य की व्यापकता और दृष्टि की उन्मुक्तता नई कविता की सबसे बड़ी विशेषता है। द्वितीय सप्तक (1951) की भूमिका में अज्ञेय जी ने लिखा है कि –“प्रयोग कोई वाद नहीं है। हम वादी नहीं रहे, नहीं हैं।”

2. घोर वैयक्तिकता –

नई कविता का प्रमुख लक्ष्य निजी मान्यताओं, विचारधाराओं और अनुभूति का प्रकाशन करना था। यथा –

साधारण नगर के, एक साधारण घर में, मेरा जन्म हुआ।
बचपन बीता अति साधारण, खान-पान, साधारण वस्त्र वास। (भारत भूषण)

3. दूषित वृत्तियों का नग्न रूप में चित्रण –

जिन वृत्तियों को अश्लील, असामाजिक एवं अस्वस्थ कहकर समाज और साहित्य में अब तक दमन किया जाता रहा था, नई कविताओं में उसकी निःसंकोच प्रस्तुति हुई। उदाहरणार्थ –

मेरे मन की अंधियारी कोठरी में,
अतृप्त आकांक्षा की वेश्या बुरी तरह खाँस रही है। (अनंत कुमार पाषाण)

4. भदेस का चित्रण –

नई कविता के कवियों ने भदेस (असुंदर, कुरूप, भद्दा) का चित्रण भी खूब किया है, जैसे –

मूत्र सिंचित मृत्तिका के वृत्त में,
तीन टाँगों पर खड़ा नत ग्रीव, धैर्यधन गदहा। – (अज्ञेय)

5. अन्य विशेषताएँ –

लघुमानव की प्रतिष्ठा, क्षणवादी समसामयिकता साधारण विषयों (जैसे – चूड़ी का टुकड़ा, चाय की प्याली, बाटा की चप्पल, कुत्ता, पेंटिंग रूम, दाल, तेल, इत्यादि) का चयन, व्यक्ति स्वातंत्र्य रूप इत्यादि नई कविता की अन्यतम विशेषताएँ थीं।

6. शैलीगत प्रवृत्तियाँ –

नये कवियों ने नये प्रतीक, उपमान, बिंब, नयी शब्दावली इत्यादि का प्रचुर प्रयोग किया था –
(i) नये प्रतीक – प्यार का बल्ब फ्यूज हो गया।
(ii) नये उपमान – आपरेशन थियेटर सी, जो हर काम करते हुए भी चुप है।
(ii) नई शब्दावली – फफूंद, बिटिया, ठहराव, अस्मिता, पारमिता इत्यादि।

नई कविता का अपना मिजाज और तेवर है। जो लोग इसे बकवास या शब्दों का जाल कहते हैं उनके विषय में केशरी कुमार का कथन है कि – “नई कविता कोई बउआ जी का झुनझुना नहीं है, जिसे जो चाहे जब चाहे बजा ले।”

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