आधुनिक काल

आंचलिक उपन्यास किसे कहते हैं ?

आंचलिक उपन्यास किसे कहते हैं (Anchalik Upanyas Kise Kahate Hain): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत आंचलिक उपन्यास पर सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।

आंचलिक उपन्यास किसे कहते हैं ?

अंचल विशेष को लेकर लिखा गया उपन्यास ‘आंचलिक उपन्यास’ (Anchalik Upanyas) है। आंचलिक उपन्यास अंचल के समग्र जीवन का वह उपन्यास है, जिसमें अंचल विशेष के लोगों के रहन-सहन, खान-पान, भाषा-लहजा, पहनावा- ओढ़ावा, मनोवृत्ति, रोमांस, धर्म, आधिदैविक चेतना, झाड़-फूँक, तंत्र- मंत्र, जादू-टोना में विश्वास, आंचलिक बोली-भाषा तथा लोकगीत का अद्भुत पुट रहता है।

आंचलिक उपन्यास में अंचल का समग्र जीवन ही उपन्यास का नायक होता है और इसमें उपन्यास के पात्रों के साथ-साथ परिवेश भी बोलता है। आंचलिक उपन्यास का उद्देश्य स्थिर स्थान पर गतिमान समय में जीते हुए अंचल के व्यक्तित्व के समग्र पहलुओं का उद्घाटन करना होता है।

आंचलिक उपन्यास के जन्मदाता फणीश्वरनाथ रेणु हैं। 1954 ई. में रचित उनकी रचना ‘मैला आँचल’ आंचलिक उपन्यासों की सृजन-यात्रा का प्रारम्भ है। ‘मैला आँचल’ पूर्णिया जिले (बिहार) के ‘मेरीगंज’ अंचल की मैली जिंदगी का वह दस्तावेज है, जिसमें फूल भी हैं, शूल भी हैं, धूल भी हैं, गुलाल भी, कीचड़ भी, चंदन भी, सुंदरता भी है, कुरुपता भी। अपने दूसरे आंचलिक उपन्यास ‘परती परिकथा’ में रेणु जी ने बिहार के ‘परानपुर’ गाँव की समग्रता एवं मुख्यतः भूमि की समस्या (लैंड सर्वे, चकबंदी, जमींदारी प्रथा इत्यादि) को कथानक बनाया है।

हिंदी के अन्य आंचलिक उपन्यासों में लोक-परलोक (उदयशंकर भट्ट), नेपाल की बेटी (बलभद्र ठाकुर), कब तक पुकारूँ (रांगेय राघव), सती मैया का चौरा (भैरव प्र. गुप्त), आधा गाँव (राही मासूम रजा), कोहबर की शर्त (केशव प्र. मिश्र), बोरीबाला से बोरीबंदर तक (शैलेश मटियानी), जंगल के फूल (राजेन्द्र अवस्थी) इत्यादि प्रमुख हैं।

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