संस्मरण से आप क्या समझते हैं ?
संस्मरण से आप क्या समझते हैं (Sansmaran Se Aap Kya Samajhte Hain): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत संस्मरण पर सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।
संस्मरण से आप क्या समझते हैं ?
‘संस्मरण’ (Sansmaran) शब्द की व्युत्पत्ति स्मृ (धातु) + सम् (उपसर्ग) + ल्युट् (अन्) प्रत्यय के योग से हुई है। इसका शाब्दिक अर्थ है – सम्यक् अर्थात् संपूर्ण रूप से स्मरण करना। डॉ. अमरनाथ ने लिखा है कि – “संस्मरण एक ऐसी स्मृति है, जो वर्तमान को अधिक सार्थक, समृद्ध और संवेदनशील बनाती है।
संस्मरण (Sansmaran) मूलतः अतीत एवं वर्तमान के बीच एक सेतु है। समय सरिता के दो तटों के बीच संवाद का माध्यम है – संस्मरण। यह एक संबंध चेतना है, जो एक तरफ स्मरणीय को आलोकित करती है तो दूसरी तरफ संस्मरणकार को भी अपने मूल्यांकन का अवसर देती है। समय के धुंध में ओझल होती जिंदगी को पुनर्नृजित करने की आंतरिक आकांक्षा में ही संस्मरण के बीज निहित होते हैं। संबंधों की आत्मीयता एवं स्मृति की परस्परता ही संस्मरण की रचना-प्रक्रिया का मूल आधार है।
डॉ. रामचंद्र तिवारी के शब्दों में – “संस्मरण किसी स्मर्यमाण की स्मृति का शब्दांकन है। वस्तुतः, संस्मरण अपने संपर्क में आये किसी व्यक्ति, वस्तु, प्राणी इत्यादि का स्मृति के आधार पर वह चित्रोपम गाथा है, जो संस्मरणकार के रागात्मक लगाव, निजी अनुभूतियों एवं संवेदनाओं के आधार पर कथात्मक रूप में संस्मरण का आकार ग्रहण करती है।
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