रीतिबद्ध काव्य धारा क्या है ?
रीतिबद्ध काव्य धारा(Ritibaddh Kavyadhara): आज के आर्टिकल में हम गद्य विधा में रीतिबद्ध काव्य धारा पर जानकारी शेयर करेंगे।
रीतिबद्ध काव्य धारा – Ritibaddh Kavyadhara
ऐसा काव्य जो अलंकार, रस, गुण, ध्वनि, नायिका-भेद इत्यादि काव्यशास्त्रीय प्रणाली पर रचा जाये, वह रीतिकाव्य कहलाता है। रीतिकाव्य को 3 भागों में बाँटा गया है – (i) रीतिबद्ध (ii) रीतिसिद्ध और (iii) रीतिमुक्त।
रीतिबद्ध काव्य धारा क्या है – Ritibadh Kavya Dhara Kya Hai
रीतिकाव्यधारा की तीन कोटियाँ थीं – रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त। रीतिबद्ध अर्थात् रीति से बँधा हुआ। ऐसे कवि जो शास्त्रीय लक्षण देते हुए काव्य-रचना किया करते थे, वे रीतिबद्ध कवि कहलाते थे और इनके द्वारा रचित काव्य ‘रीतिबद्ध काव्य’।
दूसरे शब्दों में काव्यांगों (अलंकार, रस, नायिका-भेद, गुण, ध्वनि, वक्रोक्ति इत्यादि) के लक्षण देकर उनके उदाहरण स्वरूप रचित काव्य रीतिबद्ध काव्य है। वस्तुतः रीतिबद्ध काव्य लक्षणों और उदाहरणों से युक्त काव्य है।
रीतिबद्ध कवियों की रचनाएँ
- केशवदास (रामचंद्रिका)
- देव (भवानी विलास)
- चिंतामणि त्रिपाठी
- (कविकल्पतरु)
- भूषण (शिवराजभूषण)
- मतिराम (ललितललाम)
- पद्माकर (हिम्मतबहादुर-विरदावली)
- भिखारीदास
- ग्वाल
- रसलीन
रीतिबद्ध काव्य धारा की विशेषताएं
1. आचार्यत्व या रीति विवेचन – रीतिबद्ध कवियों ने आचार्यत्व अथवा रीति का विवेचन दो कारणों से किया है— (i) ये कवि स्वयं को केवल कवि ही नहीं अपितु काव्यशास्त्र का ज्ञाता भी समझते थे। (ii) आश्रयदाता अथवा धनाढ्य लोगों को शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से रीतिबद्ध कवियों ने मुख्यतः रस, नायिका-भेद, अलंकारों इत्यादि का विवेचन किया।
2. शृंगार वर्णन – रीतिबद्ध कवियों ने जहाँ लक्षणग्रंथ लिखे हैं, वहीं इन्होंने शृंगार रस को पूर्ण रसराजत्व तक पहुँचाया है। इनके द्वारा श्रृंगार रस का इतना अधिक विस्तार साहित्य में हुआ है कि इसके एक-एक अंग को लेकर स्वतंत्र ग्रंथ लिखे गए। शृंगार के अन्तर्गत इन्होंने मुख्यतः संयोग पक्ष य एवं नायिका के सौंदर्य का निरूपण किया है। यथा – ”कुंदन को रंग फीको लगे, झलके ऐसो अंगन चारु गोराई।” (मतिराम)
3. नखशिख वर्णन की परंपरा, संस्कृत के आचार्यों की देखादेखी षङऋतु एवं बारहमासा शीर्षक से अनेक काव्यग्रथों का प्रणयन, आश्रयदाताओं की प्रशंसा (भवानीविलास, जगतविनोद, जहाँगीर जसचंद्रिका, हिम्मत बहादुर विरदावली) इत्यादि रीतिबद्ध काव्य की अन्य विशेषताएँ थीं।
4. ब्रजभाषा का परिमार्जन, मुक्तक शैली, सुकुमार भावों और ललित चेष्टाओं की मार्मिक अभिव्यंजना रीतिबद्ध काव्य की कलापक्ष की मुख्य प्रवृत्तियाँ थीं।
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