ललित निबंध किसे कहते है ?

ललित निबंध किसे कहते है(Lalit Nibandh Kise Kahate Hain): आज के आर्टिकल में हम गद्य विधा में ललित निबंध पर जानकारी शेयर करेंगे।

ललित निबंध किसे कहते है – Lalit Nibandh Kise Kahate Hain

विगत कुछ वर्षों में निबंध के ही कलात्मक रूप पर विशेष देते बल हुए ललित निबंधों की रचना हुई, जिनमें विषयवस्तु एवं विचारों के सुव्यवस्थित प्रतिपादन के स्थान पर निजी चिंतन एवं अनुभूति को स्वच्छंदतापूर्वक ललित शैली में व्यक्त किया गया। शैली के लालित्य के कारण ही इन्हें ललित निबंध कहा जाता है।

ललित निबंध की विशेषताएँ

ललित निबंध की विशेषताएँ निम्न हैं –

  • ललित निबंध में विचार की अपेक्षा अनुभूति का महत्त्व होता है।
  • कल्पना की प्रधानता पर बल होता है न कि तथ्य पर।
  •  विषयवस्तु के प्रतिपादन के स्थान पर आत्मव्यंजना का आग्रह ललित निबंध की मुख्य विशेषता है।
  • शैली में लालित्य होता है।

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हिंदी के प्रमुख ललित निबंधकार

हिंदी के प्रमुख ललित निबंधकारों में निम्नांकित प्रमुख हैं –

  • कुबेरनाथ राय – प्रिय नीलकंठी, निषाद योग, निषाद बाँसुरी, कामधेनु
  • विद्या निवास मिश्र – तुम चंदन हम पानी, मेरे राम का मुकुट भीग रहा है।
  • कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर – जिंदगी मुस्कराई, दीपजले शंख बजे।
  • हजारी प्रसाद द्विवेदी – कल्पलता, अशोक के फूल निबंध संग्रह।

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निबंध कितने प्रकार के होते है ?

निबंध के प्रकार(Nibandh Ke Prakar): आज के आर्टिकल में हम गद्य विधा में निबंध के प्रकार पर जानकारी शेयर करेंगे।

निबंध के प्रकार – Nibandh Ke Prakar

निबंध के प्रकार वर्णनात्मक निबंध, विवरणात्मक निबंध, विचारात्मक निबंध औरभावात्मक निबंध होते है निबंध के मुख्यत: चार प्रकार होते है।

निबंध की परिभाषा :

नि+बंध = निबंध का अर्थ – रोकना या बाँधना है तथा इसके पर्यायवाची के रूप में लेख रचना, संदर्भ, प्रस्ताव इत्यादि शब्द प्रयुक्त होते. हैं। आजकल इसका प्रयोग लैटिन के ‘एग्जीजियर’ (निश्चिततापूर्वक परीक्षण करना) से उत्पन्न ऐसाई (फ्रेंच) व ऐसे Essay (अंग्रेजी) के अर्थ में होता है। संस्कृत में निबंध का समानार्थी शब्द ‘प्रबंध’ है, जिसका मूल अर्थ प्र (प्रकर्ष से) बंध+अन् (बाँधना) अर्थात् सुगुंफित ग्रंथ या रचना होता है।

आधुनिक निबंध के जन्मदाता मौनतेन के अनुसार – निबंध विचारों, उद्धरणों, कथाओं इत्यादि का मिश्रण है। जॉनसन महोदय के अनुसार -“निबंध मन का आकस्मिक और उच्छृंखल आवेग असम्बद्ध और चिंतनहीन बुद्धि विलास मात्र है। आचार्य शुक्ल जी की दृष्टि में निबंध वही है जिसमें व्यक्तित्व या व्यक्तिगत विशेषता है। आत्म प्रकाशन ही निबंध का प्रथम एवं अंतिम लक्ष्य है।

निबंधों को निम्नांकित 4 भागों में विभक्त करते हैं –

  1. वर्णनात्मक निबंध
  2. विवरणात्मक निबंध
  3. विचारात्मक निबंध
  4. भावात्मक निबंध

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(1) वर्णनात्मक निबंध –

वर्णनात्मक निबंध में वर्णन की प्रधानता होती है। इसमें निबंधकार वस्तु को स्थिर होकर देखता है। इसका संबंध अधिकतर देश से होता है, जिसमें कल्पना तत्त्व की भी प्रधानता होती है।

वर्णनात्मक निबंध पटना की अपेक्षा दृश्य आश्रित होते हैं। इसमें व्यास शैली अपनायी जाती है। हजारी प्रसाद द्विवेदी के अधिकांश निबंध वर्णनात्मक निबंध हैं।

(2) विवरणात्मक निबंध –

वर्णनात्मक निबंध में देश की प्रधानता होती है, तो विवरणात्मक निबंधों में काल की प्रधानता स्थान पाती है। यह निबंध प्रायः शिकार, पहाड़ की चढ़ाई, कष्टसाध्य यात्रा, ऐतिहासिक घटनाओं, साहसिक कार्यों इत्यादि से संबंधित होता है, इसलिए इसमें कथात्मकता का अंश आ जाता है।

काल्पनिकता, प्रवाहशैली, आत्मकथात्मक शैली, भावात्मकता और कथात्मकता विवरणात्मक निबंध के मूल तत्त्व हैं। श्रीराम शर्मा एवं सियारामशरण गुप्त के निबंध इस कोटि के हैं।

(3) विचारात्मक निबंध –

विचार प्रधान निबंध विचारात्मक निबंध होते हैं। इसमें भावतत्त्व की अपेक्षा बुद्धि तत्त्व की प्रधानता होती है। विचारात्मक निबंध के केन्द्र में कोई साहित्यिक, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, आध्यात्मिक इत्यादि कोई भी विचार या समस्या होती है।

विचारात्मक निबंध को आलोचनात्मक, गवेषणात्मक तथा विवेचनात्मक निबंध भी कहते हैं। विचारात्मक निबंध में व्यास तथा समास शैली होती है। शुक्ल जी के कई निबंध इस कोटि के हैं।

(4) भावात्मक निबंध –

भावात्मक निबंध में बुद्धितत्त्व गौण और भावों की प्रधानता होती है। मनोभावों के प्राधान्य से युक्त भावात्मक निबंध काव्यात्मकता का आभास देते हैं और कभी-कभी ऐसे निबंधों को गद्य काव्य भी कहते हैं।

चिंतामणि भाग 01 में शुक्लजी के अधिकांश निबंध भावात्मक हैं। रागात्मक तत्त्व की अधिकता से युक्त भावात्मक निबंधों की शैली धारा शैली, तरंग शैली, विक्षेप शैली होती है।

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