प्रयोगवाद किसे कहते हैं ?
प्रयोगवाद(Prayogvad): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत प्रयोगवाद पर सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।
प्रयोगवाद किसे कहते हैं – Prayogvad Kise Kahte Hai
1943 ई. में प्रगतिवाद की अतिशय ‘सपाटबयानी’ और सीधे जीवन समस्याओं के चित्रण की एकरसता के विपरीत नये प्रयोगों का आंदोलन चला और प्रयोगवाद का सूत्रपात यहीं से हुआ। 1943 ई. में ‘अज्ञेय’ के संपादन में ‘तारसप्तक प्रथम’ के प्रकाशन के साथ ही नए प्रयोग की ओर कवि विशेष रूप से उन्मुख हुए। प्रयोगवाद का समय 1943 से 1951 ई. तक माना जाता है।
इन कवियों का काव्य के प्रति एक अन्वेषी का दृष्टिकोण था। इन्होंने नूतनता की खोज के लिए केवल की घोषणा की थी इसलिए इसे ‘प्रयोगवाद’ कहा गया। हालांकि इसका विरोध भी होता रहा।
दूसरा सप्तक (1951 ई.) में प्रकाशन के साथ ही ‘अज्ञेय’ ने उस समय की कविता को प्रयोगवाद न कहकर ‘नई कविता’ कहा – “प्रयोग का कोई वाद नहीं है, हम वादी नहीं रहे, नहीं हैं।” इस प्रकार प्रयोगवाद ही संतुलन की खोज में नई कविता हो जाता है। दूसरे शब्दों में प्रयोगवादी कविता का स्वाभाविक विकास नई कविता है।
प्रयोगवाद के कवि और उनकी रचनाएँ
कवि | रचनाएँ |
अज्ञेय | भग्नदूत, चिंता, इत्यलम् ‘हरी घास पर क्षणभर, बावरा, अहेरी |
भवानी प्रसाद मिश्र | गीतफरोश |
गिरिजा कुमार माथुर | मंजीर, नाश और निर्माण, धूप के धान |
धर्मवीर भारती | ठंडा लोहा, अंधा युग। |
नरेश कुमार मेहता | संशय की एक रात। |
इसके अतिरिक्त अन्य कवि नेमिचंद्र जैन, भारत भूषण अग्रवाल, शमशेर बहादुर सिंह इत्यादि है।
प्रयोगवाद की विशेषताएँ
1. अहंवाद – किंतु हम हैं नदी के द्वीप,
हम धारा नहीं हैं। (अज्ञेय)
2. दुःख का महत्त्व स्वीकार्य – दुःख सबको माँजता है।
चाहे वह स्वयं को मुक्ति देना न जाने किंतु जिनको माँजता है उन्हें यह सीख देता है कि सबको मुक्त रखें। (अज्ञेय)
3. यथार्थ का आग्रह (प्रकृति – चाँदनी)
वंचना है चाँदनी
झूठ वह आकाश का निरवधि गहन विस्तार (अज्ञेय)।
4. निराशावादिता –
मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ, लेकिन मुझे फेंको मत। (धर्मवीर भारती)
5. कलापक्ष – प्रयोगवादी कवियों की भाषा-शैली हिंदीनिष्ठ थी, जिनमें आंचलिक शब्दों का प्रयोग भी समाहित है। छायावादी काव्य प्रायः छंदोबद्ध है; प्रयोगवादी काव्य निर्बंध। छायावाद तुकांत है; प्रयोगवाद अतुकांत। छायावाद शब्दलय का आग्रही है; प्रयोगवाद अर्थलय का। प्रयोगवाद में प्रगीत तत्त्व है। प्रयोगवाद में 2 पंक्तियों तक की कविता लिखी गई – घंटारव। घंटारव (शमशेर बहादुर)।
प्रयोगवादी कविता पर ‘साधारणीकरण के अभाव (डॉ. नगेन्द्र, नंददुलारे वाजपेयी इत्यादि) का आरोप लगाया जाता है। शिवदानसिंह ने प्रयोगवाद को पाश्चात्य साहित्य के प्रतीकवाद का अनुकरण मात्र कहा है।
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