पूर्वी हिंदी की बोलियाँ : वर्गीकरण
पूर्वी हिंदी की बोलियाँ (Purvi Hindi ki Boliyan): आज के आर्टिकल में हम पूर्वी हिंदी की बोलियों के बारे में जानकारी शेयर करेंगे।
पूर्वी हिंदी की बोलियाँ
1. अवधी
इस बोली का केंद्र ‘अयोध्या’ है। अयोध्या का ही विकसित रूप अवध है जिससे ‘अवधी’ बना है। इसके उद्भव के संबंध में विवाद है। बैसवाड़ी, मिर्जापुरी, बनौधी इसकी मुख्य बोलियाँ हैं।
क्षेत्र – लखनऊ, इलाहाबाद, फतेहपुर, मिर्जापुर (अंशतः) उन्नाव, रायबरेली, सीतापुर, फैजाबाद, गोंडा, बस्ती, बहराइच, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, बाराबंकी इत्यादि हैं।
प्रमुख विशेषताएँ – संज्ञा के तीन रूप (घोर, घोरवा, घोरौना), स्वार्थे ‘वा’ का व्यापक प्रयोग (भोलवा, मोरवा), ‘ह’ और ‘यार’ का आगम (सईस—सहीस, इच्छा-द्विच्छा; पसंद-परसंद, वियोग-विरोग), महाप्राणीकरण (पुन:-फुन, पेड़-फेड़) व का ब (विद्यालय — बिद्यालय), मौसा के लिए ‘मौसिया’, व्यंजनातता (घोड़ा-घोर; होत्-होब; करव्)।
2. बघेली
बघेल राजपूतों के आधार पर रीवां तथा आस-पास का क्षेत्र बघेलखंड कहलाता है और वहाँ की बोली बघेली या बघेलखंडी कहलाती है।
क्षेत्र – रीवां, नागौद, शहडोल, सतना, मैहर तथा आस-पास का क्षेत्र है।
प्रमुख विशेषताएँ – सर्वनामों में मुझे के स्थान पर म्वा, मोही; तोही के स्थान पर त्वां, तोही; विशेषण में ‘हा’ प्रत्यय (नीकहा) घोड़ा का घ्वाड़, मोर का म्वार, पेट का प्याट, देत का घात इत्यादि।
3. छत्तीसगढ़ी
मुख्य क्षेत्र ‘छत्तीसगढ़’ होने के कारण इसका नाम ‘छत्तीसगढी’ पड़ा।
क्षेत्र – सरगुजा, कोरिया, बिलासपुर, खैरागढ़, रायगढ़, दुर्ग, नदगाँव, कांकेर इत्यादि।
प्रमुख विशेषताएँ – कुछ शब्दों में महाप्राणीकरण (इलाका—इलाखा), अघोषीकरण (बंदमी—बंदकी, शराब शराप ), ( खराब – खराप) स का छ तथा छ का स (सीता—छीता, छेना – सेना), ऋ का उच्चारण ‘रु’ (उड़िया तथा मराठी की सीमा पर ) इत्यादि।
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