निबंध के तत्व कितने होते हैं ?

निबंध के तत्व(Nibandh ke Tatva): आज के आर्टिकल में हम गद्य विधा में निबंध के तत्व पर जानकारी शेयर करेंगे। निबंध के प्रमुख तत्त्व वैचारिकता, वैयक्तिकता ,शैली, और समाहारिता होते है।

निबंध के तत्व – Nibandh ke Tatva

निबंध के वैसे कोई सर्वसामान्य तत्त्व निर्धारित नहीं किये जा सकते जैसे कि साहित्य की अन्य विधाओं के तत्त्व स्पष्ट रूप से निर्धारित हो जाते हैं।

निबंध-सृजन के निम्नांकित तत्त्व हो सकते हैं –

  1. वैचारिकता
  2. वैयक्तिकता
  3. शैली
  4. समाहारिता

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(1) वैचारिकता

वैचारिकता निबंध का प्रथम तत्त्व है। निबंध में जिस विचार तत्त्व की प्रधानता होती है, वह विचार तत्त्व भाव का स्पर्श लिए हुए होता है। निबंध की वैचारिकता निबंधकार की आत्मगत वैचारिकता होती है।

(2) वैयक्तिकता

वैयक्तिकता को निबंध का द्वितीय मुख्य तत्त्व कहा जा सकता है। निबंध का मूलाधार यदि विचार है तो विचार का मूलाधार निबंधकार की वैयक्तिकता है। निबंध में वैयक्तिकता से अभिप्राय निबंधकार का वह विषयगत रूप है जो उसके पूरे वैचारिक धरातल पर खड़ा है।

(3) शैली

निबंध में जितना महत्त्व वैचारिकता और वैयक्तिकता का है, उतना ही महत्त्व शैली का भी है। साहित्य की सभी विधाओं में निबंध एक ऐसी विधा है जो पूर्णतया शैली आश्रित है। उत्कृष्ट शैली का मुख्य आधार शब्द चयन और अद्भुत कसाव है, जिसके आधार पर निबंध एक सुगठित रचना बनता है।

(4) समाहारिता

समाहारिता निबंध का एक प्रमुख तत्त्व है। यह समाहार वैचारिकता, वैयक्तिकता और शैली की सानुपातिकता का दूसरा नाम है। निबंध लेखन में निबंधकार की एक आँख निरन्तर तात्त्विक समाहार पर टिकी रहनी चाहिए, नहीं तो निबंध ‘उच्छृंखल बुद्धि विलास’ बनकर रह जायेगी।

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निबंध कितने प्रकार के होते है ?

निबंध के प्रकार(Nibandh Ke Prakar): आज के आर्टिकल में हम गद्य विधा में निबंध के प्रकार पर जानकारी शेयर करेंगे।

निबंध के प्रकार – Nibandh Ke Prakar

निबंध के प्रकार वर्णनात्मक निबंध, विवरणात्मक निबंध, विचारात्मक निबंध औरभावात्मक निबंध होते है निबंध के मुख्यत: चार प्रकार होते है।

निबंध की परिभाषा :

नि+बंध = निबंध का अर्थ – रोकना या बाँधना है तथा इसके पर्यायवाची के रूप में लेख रचना, संदर्भ, प्रस्ताव इत्यादि शब्द प्रयुक्त होते. हैं। आजकल इसका प्रयोग लैटिन के ‘एग्जीजियर’ (निश्चिततापूर्वक परीक्षण करना) से उत्पन्न ऐसाई (फ्रेंच) व ऐसे Essay (अंग्रेजी) के अर्थ में होता है। संस्कृत में निबंध का समानार्थी शब्द ‘प्रबंध’ है, जिसका मूल अर्थ प्र (प्रकर्ष से) बंध+अन् (बाँधना) अर्थात् सुगुंफित ग्रंथ या रचना होता है।

आधुनिक निबंध के जन्मदाता मौनतेन के अनुसार – निबंध विचारों, उद्धरणों, कथाओं इत्यादि का मिश्रण है। जॉनसन महोदय के अनुसार -“निबंध मन का आकस्मिक और उच्छृंखल आवेग असम्बद्ध और चिंतनहीन बुद्धि विलास मात्र है। आचार्य शुक्ल जी की दृष्टि में निबंध वही है जिसमें व्यक्तित्व या व्यक्तिगत विशेषता है। आत्म प्रकाशन ही निबंध का प्रथम एवं अंतिम लक्ष्य है।

निबंधों को निम्नांकित 4 भागों में विभक्त करते हैं –

  1. वर्णनात्मक निबंध
  2. विवरणात्मक निबंध
  3. विचारात्मक निबंध
  4. भावात्मक निबंध

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(1) वर्णनात्मक निबंध –

वर्णनात्मक निबंध में वर्णन की प्रधानता होती है। इसमें निबंधकार वस्तु को स्थिर होकर देखता है। इसका संबंध अधिकतर देश से होता है, जिसमें कल्पना तत्त्व की भी प्रधानता होती है।

वर्णनात्मक निबंध पटना की अपेक्षा दृश्य आश्रित होते हैं। इसमें व्यास शैली अपनायी जाती है। हजारी प्रसाद द्विवेदी के अधिकांश निबंध वर्णनात्मक निबंध हैं।

(2) विवरणात्मक निबंध –

वर्णनात्मक निबंध में देश की प्रधानता होती है, तो विवरणात्मक निबंधों में काल की प्रधानता स्थान पाती है। यह निबंध प्रायः शिकार, पहाड़ की चढ़ाई, कष्टसाध्य यात्रा, ऐतिहासिक घटनाओं, साहसिक कार्यों इत्यादि से संबंधित होता है, इसलिए इसमें कथात्मकता का अंश आ जाता है।

काल्पनिकता, प्रवाहशैली, आत्मकथात्मक शैली, भावात्मकता और कथात्मकता विवरणात्मक निबंध के मूल तत्त्व हैं। श्रीराम शर्मा एवं सियारामशरण गुप्त के निबंध इस कोटि के हैं।

(3) विचारात्मक निबंध –

विचार प्रधान निबंध विचारात्मक निबंध होते हैं। इसमें भावतत्त्व की अपेक्षा बुद्धि तत्त्व की प्रधानता होती है। विचारात्मक निबंध के केन्द्र में कोई साहित्यिक, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, आध्यात्मिक इत्यादि कोई भी विचार या समस्या होती है।

विचारात्मक निबंध को आलोचनात्मक, गवेषणात्मक तथा विवेचनात्मक निबंध भी कहते हैं। विचारात्मक निबंध में व्यास तथा समास शैली होती है। शुक्ल जी के कई निबंध इस कोटि के हैं।

(4) भावात्मक निबंध –

भावात्मक निबंध में बुद्धितत्त्व गौण और भावों की प्रधानता होती है। मनोभावों के प्राधान्य से युक्त भावात्मक निबंध काव्यात्मकता का आभास देते हैं और कभी-कभी ऐसे निबंधों को गद्य काव्य भी कहते हैं।

चिंतामणि भाग 01 में शुक्लजी के अधिकांश निबंध भावात्मक हैं। रागात्मक तत्त्व की अधिकता से युक्त भावात्मक निबंधों की शैली धारा शैली, तरंग शैली, विक्षेप शैली होती है।

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