मुक्तिबोध के काव्य की विशेषताएँ
मुक्तिबोध के काव्य की विशेषताएँ (Muktibodh Ki Kavya Ki Visheshtaen): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत मुक्तिबोध के काव्य की विशेषताओं पर सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।
मुक्तिबोध के काव्य की विशेषताएँ
गजानन माधव मुक्तिबोध (Gajanan Madhav Muktibodh) नयी कविता के सर्वाधिक समर्थ एवं सशक्त कवि हैं। हिन्दी- कविता विशेषकर नयी कविता के कवियों में गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ का नाम अविस्मरणीय है। ‘तारसप्तक’ प्रथम के सात कवियों में मुक्तिबोध अपना गौरवपूर्ण स्थान रखते हैं।
मुक्तिबोध (1917-1964) की काव्य-रचनाओं को इस प्रकार देखा जा सकता है –
काव्य –
चाँद का मुँह टेढ़ा है (1964)
भूरी-भूरी रवाक धूल
प्रमुख कवितायें –
अँधेरे में, ब्रह्मराक्षस, आत्म वक्तव्य, भूल गलती,
चकमक की चिनगारियाँ, दिमागी गुहान्धकार।
मुक्तिबोध के काव्य की विशेषताओं (Muktibodh Ke Kavya Ki Visheshtaen) को इस प्रकार देखा जा सकता है –
1. छायावादी रोमांटिक प्रवृत्ति –
मुक्तिबोध (Muktibodh) के कवि-जीवन का प्रारम्भ छायावाद के पतनकाल में हुआ था। उस समय (1935-1940) की उनकी रचनायें छायावादी भाव-भाषा से प्रभावित हैं। प्रकृति, सौन्दर्य, काल्पनिकता, वेदनानुभूति इत्यादि छायावादी विशेषतायें उनके काव्य में दिखाई पड़ती हैं। देखें –
1. वेदना का कवि बनूँ मैं
कल्पना का मृदु चितेरा।
2. बह रही है दुःख की यह विमल धारा
फूल के इस हास में ही अश्रु का भी हास प्यारा।
2. दुःखवादी चेतना –
मुक्तिबोध के काव्य में दुःखवादी चेतना की प्रबल अभिव्यक्ति हुई है। उनकी काव्य-संवेदना ड्राइंग रूम की काव्य-संवेदना नहीं है; बल्कि मुक्तिबोध सामान्य जन, वेदना, उत्पीड़न, घुटन और निराशा से मर्माहित कवि हैं। उनके काव्य में स्व दुःख की अपेक्षा पर दुःख की अभिव्यक्ति हुई है –
घनी रात बादल रिमझिम है, दिशा मूक निस्तब्ध,
रूपान्तरण व्यापक अंधकार में सिकुड़ी सोई नर की बस्ती, भयंकर।
3. मार्क्सवादी चेतना –
गजानन माधव मुक्तिबोध मार्क्सवादी चेतना के कवि हैं। उनकी मार्क्सवादी चेतना प्रधान कविताओं में सत्ताधारियों, पूँजीपतियों, साधन सम्पन्न प्रतिष्ठित व्यक्तियों के अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार के विरुद्ध सशक्त विद्रोहात्मक स्वर की अभिव्यक्ति हुई है। पूँजीवादी समाज के प्रति उनका कथन है कि –
तू है भरण, तू है रिक्त, तू है व्यर्थ,
तेरा हवन्स केवल एक तेरा अर्थ।
4. व्यंग्य और विद्रूप –
मुक्तिबोध एक सफल व्यंग्यकार भी थे। उन्होंने समाज की विद्रूपताओं-पूंजीवादी नीतियों, राजनीतिक षड्यंत्रों, आधुनिकीकरण इत्यादि पर तीक्ष्ण व्यंग्य प्रस्तुत किया है। देखें –
1. पाउडर में सफेद अथवा गुलाबी,
छिपे बड़े-बड़े चेचक के दाग मुझे दिखते हैं,
सभ्यता के चेहरे पर।
2. गाँधीजी की मूर्ति पर बैठे हुये घुघ्घू ने,
गाना शुरू किया, हिचकी ताल पर।
रात्रि का काला स्याह कनटोप पहने हुये
आसमान बाबा ने की हनुमान चालीसा।
5. असुरक्षित जीवन का भाव एवं निराशा –
डॉ. रामविलास शर्मा ने मुक्तिबोध की कविता को असुरक्षित जीवन की कविता कहा है। उनके काव्य में भय, संत्रास, छटपटाहट, असुरक्षा, निराशा इत्यादि की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है। निराशा का एक चित्र देखें –
घनीरात, बादल रिमझिम है दिशा, मूक कविता,
मन गीला, यह सब क्षणिक जीवन है क्षण भंगुर।
6. विरोध एवं विद्रोह –
मुक्तिबोध के काव्य में विद्रोहात्मक एवं विरोध के स्वर भरे पड़े हैं। उनकी दृष्टि में सामान्य के दुःख-दर्द का एक ही उपाय है और वह है जनक्रांति। मुक्तिबोध का मत है कि—जन संगठन के द्वारा ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। देखें –
साथ-साथ घूमते हैं, साथ-साथ रहते हैं
साथ-साथ सोते हैं, खाते हैं पीते हैं।
धन मन उद्देश्य।
इस उदाहरण के द्वारा मुक्तिबोध ने जन संगठन की सिफारिश की है।
मुक्तिबोध के कला पक्ष की विशेषताएँ
1. भाषा –
मुक्तिबोध की भाषा अधिकांशतः सरल, तत्सम एवं तद्भव प्रधान है; जिसमें उर्दू, फारसी (जैसे- खुदा, स्याह, सिवाही, रौब, रोशनी, सौहदा, जिन्दगी इत्यादि) के शब्दों की बहुलता है। इनके काव्य में अंग्रेजों शब्द कम आये हैं। रहस्यवादी शब्दावली नगीना, इकठ्ठा, पिंगला, सुषुम्ना, ज्ञानमणि इत्यादि का भी प्रयोग हुआ है। इनकी भाषा कथ्य के अनुसार करवट लेती है।
2. अप्रस्तुत योजना –
अप्रस्तुत योजना की दृष्टि से मुक्तिबोध ने अपने गहन व्यक्तित्व का परिचय दिया है। उनकी अप्रस्तुत योजना में मौलिकता, नवीनता, यथार्थ बोध आदि विशेषतायें देखने को मिलती हैं।
जैसे –
बैचेनी के साँपों को मैंने छाती से रगड़ा है। यहाँ बैचेनी के लिए साँपों एक उपयुक्त अप्रस्तुत है।
आत्मा की कुतिया भाँतों के जालों से इत्यादि कुछ चौंका देने वाले अप्रस्तुतों की भी मुक्तिबोध ने सृष्टि की है।
3. प्रतीक योजना –
मुक्तिबोध का काव्य इस दृष्टि से अत्यंत उत्कृष्ट है। मुक्तिबोध ने जिन परम्परागत, पौराणिक, ऐतिहासिक प्रतीकों का प्रयोग किया है, वैसा प्रयोग आज तक कोई नहीं कर सका है। इस दृष्टि से मुक्तिबोध अकेले कवि हैं। उनके कुछ प्रतीक देखें –
पौराणिक प्रतीक – एकलव्य, अक्षयवर, नकड़ी का रावण।
ऐतिहासिक प्रतीक –
ब्रह्म राक्षस (अतीत की बौद्धिक चेतना का प्रतीक)
रक्तालोक स्रात पुरुष – (संघर्षशील संस्कृति का प्रतीक)
4. अलंकार, रस-योजना –
मुक्तिबोध के काव्य में उपमा, यमक, मानवीकरण इत्यादि के उदाहरण तो मिलते हैं किन्तु रस-योजना का अभाव मिलता है। नाद-सौंदर्य मुक्तिबोध के काव्य की एक अन्य प्रमुख विशेषता है।
5. शैली –
शैली की दृष्टि से मुक्तिबोध का कोई जोड़ नहीं है। मुक्तिबोध की अविस्मरणीय स्मृति उपलब्धि है-उनकी फैंटेसी-शैली। ‘ब्रह्मराक्षस’ और ‘अँधेरे में’ शीर्षक कविताऐं फैंटेसी शैली का सुन्दर नमूना है।
इस प्रकार मुक्तिबोध का काव्य भावपक्ष एवं कलापक्ष की दृष्टि से सम्पन्न है।
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