काव्यशास्त्र

साधारणीकरण से आप क्या समझते हैं ?

साधारणीकरण से आप क्या समझते हैं (Sadharanikaran Se Aap Kya Samajhte Hain): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के अन्तर्गत साधारणीकरण के बारे में जानकारी शेयर करेंगे।

साधारणीकरण से आप क्या समझते हैं ?

साधारणीकरण का अर्थ है – असाधारण का साधारण या विशेष का निर्विशेष हो जाना। साधारणीकरण का सर्वप्रथम प्रयोग भट्टनायक ने रसनिष्पत्ति संबंधी भरत के रससूत्र (विभावानुभावव्यभिचारीसंयोगा द्रसनिष्पत्ति:’) के अंतर्गत किया था।

भट्टनायक के अनुसार – जब पाठक अथवा दर्शक काव्य या नाटक के अभिधार्थ को ग्रहण कर लेता है, तब उसके हृदय में भावकत्व शक्ति के द्वारा सत्त्व की प्रधानता होती है; तब उसके हृदय में ‘मैं’ और ‘पर’ का द्वैध दूर हो जाता है। वह भोजकत्व शक्ति के द्वारा उद्बुद्ध भावों का रसास्वादन करता है। यह स्थिति-विशेष जिस व्यापार से संभव होती है उसे साधारणीकरण कहते हैं। वस्तुतः, काव्य या नाटक पढ़ते अथवा देखते वक्त पाठक और श्रोता उसके अनुरूप आचरण करने लगता है, उसमें ‘मैं’ और ‘पर’ का भेद समाप्त हो जाता है, उसे ही साधारणीकरण कहते हैं।

नंददुलारे वाजपेयी ने ‘समस्त काव्य व्यापार का साधारणीकरण’ माना है तो डॉ. नगेन्द्र ने कवि की अनुभूति का साधारणीकरण माना है और केशव प्रसाद मिश्र ने सहृदय की चेतना का।

वस्तुतः साधारणीकरण कवि की अनुभूति का ही होता है। कवि की अनुभूतियाँ सहृदयों की अनुभूतियाँ बन जाती हैं। संपूर्ण मानवता एक चेतना से चैतन्य होने के कारण ऐसा होता है।

  • अभिनवगुप्त ने भट्टनायक के भावकव्य एवं भोजकत्व शक्ति को अस्वीकार कर वासना को स्वीकृति दी और स्थायी भाव का साधारणीकरण माना।
  • आचार्य रामचंद्र शुक्ल – साधारणीकरण आलंबनत्व धर्म का होता है।
  • जगन्नाथ ने साधारणीकरण के स्थान पर दोषदर्शन की चर्चा की।

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