रघुवीर सहाय के काव्य की विशेषताएँ (Raghuvir Sahay Ke Kavya Ki Visheshtaen): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत रघुवीर सहाय के काव्य की विशेषताओं पर सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।
रघुवीर सहाय के काव्य की विशेषताएँ
रघुवीर सहाय (1929-1990) एक प्रभावशाली कवि होने के साथ- साथ कथाकार, निबंध-लेखक और आलोचक थे। पत्रकार, संपादक और अनुवादक के रूप में उनकी विशिष्टता निर्विवाद है। ये नभाटा (नवभारत टाइम्स, दिल्ली) में संवाददाता और मशहूर पत्रिका दिनमान के 1969 से 1982 तक प्रधान संपादक रहे। रघुवीर सहाय 1982 ई. में ‘लोग भूल गये हैं’ कृति के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजे गये।
रघुवीर सहाय (Raghuvir Sahay) ‘द्वितीय सप्तक’ (1951 ई.) के प्रकाशन के साथ ही एक कवि के रूप में हिंदी काव्य-संसार में छा गये। नये कवियों में प्रसिद्ध रघुवीर सहाय प्रगतिशील काव्य-धारा के प्रतिनिधि कवि हैं; जिनका काव्य स्वातंत्र्योत्तर भारत के यथार्थ का अद्भुत् दस्तावेज है।
‘सीढ़ियों पर धूप में’ (1960 ई.), आत्महत्या के विरुद्ध (1967 ई.), हँसो-हँसो जल्दी हँसो (1975 ई.), लोग भूल गये हैं (1982 ई.), कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ (1989 ई.) तथा एक समय था (1994 ई., मरणोपरान्त प्रकाशित) उनकी 6 काव्य-कृतियाँ हैं। दिल्ली मेरा परदेस; लिखने का कारण; ऊबे हुए सुखी; वे और नहीं होंगे जो मारे जायेंगे; भँवर लहरें और तरंग रघुवीर सहाय के निबंध-संग्रह हैं। इनके 2 कहानी-संग्रह भी बेहद चर्चित हैं- 1. रास्ता इधर से है और 2. जो आदमी हम बना रहे हैं।
रघुवीर सहाय के काव्य की विशेषताएँ (Raghuvir Sahay Ke Kavya Ki Visheshtaen) इस प्रकार हैं –
1. जन-यथार्थ –
रघुवीर सहाय की कविता का केन्द्रीय बिन्दु समकालीन साधारण जन का यथार्थ है। उनकी कविताओं में स्वातंत्र्योत्तर भारत में बदली हुई परिस्थितियों, बदले हुए प्रशासन, लोकतंत्र के नाम पर विडम्बना और विसंगतिपूर्ण स्थितियों का पर्दाफाश है तो गरीबी, ऊब, उदासी, अभावग्रस्त अकेलेपन का कच्चा चिट्ठा इत्यादि का वर्णन जो देश की आबादी की 80% जनता के जनजीवन का कड़वा भयावह सत्य है। इनकी दुनिया लोकतंत्र की विसंगतियों को झेल रहे आम आदमी की दुनिया है। यथार्थ पर बल देने की प्रक्रिया में वह अतिशय भावुकता पर प्रहार करते हुए लिखते हैं कि –
कितना अच्छा था छायावादी कवि
एक दुःख लेकर वह एक गान देता था
कितना कुशल था प्रगतिवादी
हर दुःख का कारण पहचान लेता था
कितना महान था गीतकार
जो दुःख के मारे अपनी जान लेता था
कितना अकेला हूँ मैं इस समाज में। – कोई एक और मतदाता
रघुवीर सहाय की ‘रामदास’ शीर्षक प्रसिद्ध कविता समकालीन परिवेश की भयावहता, शासनतंत्र के निठल्लेपन, वर्तमान काल का यथार्थ, समकालीन सामयिक परिवेश में व्याप्त संवेदनहीनता, स्वार्थरता एवं व्यक्ति के अकेलेपन की बेजोड़ कविता है।
रामदास उस दिन उदास था, अंत समय आ गया पास था,
उसे बता यह दिया गया था उसकी हत्या होगी।
धीरे-धीरे चला अकेले, सोचा साथ किसी को ले लें,
फिर रह गया, सड़क पर सब थे
सभी मौन थे, सभी निहत्थे ……….
निकल गली से तब हत्यारा……. भीड़ ढेलकर लौट गया वह मरा पड़ा है रामदास यह ! – रामदास
2. राजनीतिक चेतना –
रघुवीर सहाय हिन्दी – साहित्य में एक राजनीतिक कवि के रूप में अपनी पहचान, अपनी अस्मिता, अपना अस्तित्व रखते हैं। मुक्तिबोध, धूमिल, श्रीकांत वर्मा, चंद्रकांत देवताले, लीलाधर जगूड़ी की कड़ी में रघुवीर सहाय ने राजनैतिक संदर्भों को व्यापक फलक पर रूपायित किया है।
रघुवीर सहाय की माइल स्टोन रचना ‘आत्महत्या के ‘विरुद्ध’ में राजनीतिज्ञों के छल, उनके झूठे आश्वासनों, कोरे कायों, सांसद, नेताओं की अवसरवादिता, दलबंदी, सत्तालोलुपता इत्यादि का पूरा का पूरा चित्र विडम्बना और विसंगतिपूर्ण रूप में साकार होता है।
स्वर्ण शिखर से आकर आत्मा के स्वर्णखंड
किये जाये/गोल शब्दों में अमोल बोल तुतलाते
भीमकाय भाषाविद् हाँफते डकारते हँकाते!
अंगरेजी का अवध्य गाय
घंटा घनघनाते पुजारी जय-जयकार
सरकार से करार जारी हजार शब्द रोज/कैद।
नेहरू युग के खोखलेपन को आत्महत्या के विरुद्ध कविता बखूबी साकार करती है। निम्न पंक्तियों में कवि का मानवीय-बोध, समाज-बोध एवं व्यंग्य की धार दर्शनीय है –
गया वाजपेयी जी से पूछ आया देश का हाल
पर उढा नहीं सका नंगी औरत को कंबल
रेलगाड़ी में बीस अजनबियों के सामने (आत्महत्या के विरुद्ध)
3. आक्रोश का स्वर –
रघुवीर सहाय की कविता में एक ओर समकालीन अवाम की पीड़ा, दुःख-दर्द, अभाव, बेबसी, बेचारगी इत्यादि का चित्रण है, तो दूसरी ओर राजनीति जगत् में व्याप्त भ्रष्टाचार, राजनीति के विकृत और भयावह रूप का निदर्शन है। रघुवीर सहाय की ‘आत्मा के ‘विरुद्ध’ और ‘हंस हंसे और हंस’ शीर्षक काव्य-संग्रह की अनेक कविताओं में व्यवस्था के प्रति कहीं क्षोभ, कहीं विरोध, कहीं व्यंग्य और कहीं आक्रोश का स्वर गंभीरतापूर्वक प्रकट हुआ है। उदाहरण –
हर संकट में भारत में एक गाय है
होता है
ठीक समय ठीक बहस नहीं कर सकती
राजनीति
बाद में जहाँ कहीं से भी शुरू करो
बीच सड़क पर गोबर कर देता है विचार।
4. व्यंग्यात्मकता –
रघुवीर सहाय चूँकि राजनीति के कवि हैं और उनके काव्य का मूल स्वर जहाँ एक ओर विद्रोह एवं आक्रोश से भरा है. वहीं दूसरी ओर उनके व्यंग्य की पैनी धार भी है। आत्महत्या के विरुद्ध, नेता क्षमा करें, मतदाता, अधिनायक इत्यादि कविताओं में रघुवीर सहाय की व्यंग्यात्मकता देखते ही बनती है। ‘अधिनायक’ शीर्षक कविता में रघुवीर सहाय ने हमारे देश के राष्ट्रगीत ‘जन-गण-मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता’ हमारे देश के मूल में सत्ताहीन नेताओं की स्वार्थपरता, होंग, दिखावे की प्रवृत्ति पर तंज इस प्रकार कसा है –
राष्ट्रगीत में भला कौन वह, भारत भाग्य विधाता है,
फटा सुथन्ना पहने जिसका, गुन हर चरना गाता है।
मखमल, टमटम, बल्लम, तुरी, पगड़ी, छत्र, तँवर के साथ
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर, जय-जय कौन कराता है। – अधिनायक
5. अन्य विशेषताएँ –
रघुवीर सहाय के काव्य-फलक में जनजीवन का यथार्थ, राजनीति, आक्रोश, व्यंग्य इत्यादि के साथ-साथ रोमानी प्रेम की अभिव्यक्ति, बौद्धिकता, प्रकृति के प्रति नया नजरिया, अनाहत जिजीविष व मुक्ति के स्वर इत्यादि की अभिव्यंजना है। रघुवीर सहाय की अनेक कविताएँ (यथा-नारी, चढ़ती स्त्री, अकेली औरत, पागल औरत, हकीम और औरत, औरत का सीना, नंगी औरत, नन्हीं लड़की) स्त्री-जगत् से संबंधित हैं; जिनमें स्त्रियों की समाज में दयनीय दशा, स्त्रियों के प्रति सामंती दृष्टिकोण, स्त्रियों के भविष्य को जानने की पड़ताल है, तो सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्य स्त्री-पुरुष की समानता का प्रबल भाव है।
बंधु हम दोनों थके हैं,
और थकते ही रहे तो साथ चलते भी रहेंगे,
वह नहीं है साथ जिसमें तुम थको तो हम तुम्हें
लादे फिरें
और हम थके तो दम तुम्हारा फूल जाय हाय।
6. कलापक्ष विषयक विशेषताएँ –
भाषा – रघुवीर सहाय के दौर में तीन नाम शीर्ष पर थे गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ फंतासी के लिए जाने जाते थे; शमशेर बहादुर सिंह शायरी के लिए पहचान रखते थे; जबकि रघुवीर सहाय अपनी भाषा और शिल्प के लिए लोकप्रिय थे। रघुवीर सहाय की भाषा जनता-जनार्दन की जनभाषा है; जो उन करोड़ों लोगों के अनुभव और विचारों के ठोस जमीन पर खड़ी है तथा जो उनसे ही आकार ग्रहण करती है।
रामस्वरूप चतुर्वेदी ने लिखा है कि – “रघुवीर सहाय की एक बड़ी विशेषता है कि उनकी काव्य-भाषा की सिद्धि शब्दों के सन्दर्भ, उनकी ध्वनियाँ तथा भाव चित्र कवि ने अच्छी तरह से समझे हैं। विद्रूपों के चित्रण में उनकी भाषा की मुहल्लेदारी प्रवृत्ति बहुत स्वाभाविक लगती है, जो नयी कविता विशिष्ट उपलब्धि है।”
रघुवीर सहाय की कविता शब्द के हर अर्थ में क्रमशः गद्य की ओर उन्मुख हुई है। इसलिए रामस्वरूप चतुर्वेदी ने रघुवीर सहाय की कविता को ‘गद्य-कविता’ शीर्षक से नया नामकरण किया है। कविता को गद्य की बनावट में ढालना रघुवीर सहाय के कलापक्ष की निजी विशेषता है।
शिल्प की दृष्टि से भी रघुवीर सहाय ने नये प्रयोग किये हैं। इनमें आंतरिक समीकरण तो हैं ही, साथ ही साथ नाटकीय होने से उसका प्रभाव- क्षेत्र भी अत्यन्त प्रभावोत्पादक है। ‘हमारी हिन्दी’ शीर्षक कविता का उदाहरण –
हमारी हिंदी एक दुहाजू की बीबी है,
बहुत बोलनेवाली, बहुत खानेवाली, बहुत सोनेवाली।
‘आत्महत्या के विरुद्ध’ शीर्षक कविता का एक और उदाहरण –
हमारी हिंदी सुहागिन है सती है खुश है,
उसकी साध यही है कि खसम से पहले मरे।
रामस्वरूप चतुर्वेदी ने लिखा है कि रचनात्मक स्तर पर बिंब-विधान कुछ नये रूप रघुवीर सहाय की कविताओं में विकसित हुए हैं। अपनी भाषा के रचाव में उन्होंने वर्णन और बिंब के भेद को क्रमशः मिटाया है।
रघुवीर सहाय की कविताओं में वर्णन-बिंब का अभेद कैसे संभव होता है, इसे निम्न उदाहरण से समझा जा सकता है –
सिंहासन ऊँचा है सभाध्यक्ष छोटा है
अगणित पिताओं के
एक परिवार के
मुँह बाये बैठे हैं लड़के सरकार के लूले, काने, बहरे विविध प्रकार के।
हल्की सी दुर्गंध से भर गया है सभाकक्ष। – मेरा प्रतिनिधि
इस उद्धरण में किसी सामान्य सभाकक्ष का वर्णन है और विशिष्ट सभाकक्ष का बिंब भी। वर्णन मूलतः प्रस्तुत कथन है, बिंब अप्रस्तुत विधान। उन्हीं पंक्तियों में वर्णन और बिंब के स्तरों की टकराहट अर्थ को असाधारण विस्तार देती है।
समग्रतः कहा जा सकता है कि नई कविता के प्रमुख हस्ताक्षर रघुवीर सहाय का काव्य संवेदना और शिल्प दोनों धरातलों पर बेजोड़ हैं। राजनीतिक परिदृश्य, जन-यथार्थ, आक्रोश, व्यंग्य, विद्रोही दृष्टिकोण, प्रणय-भावना इत्यादि भावपक्ष विशेषताओं के कारण रघुवीर सहाय राजनीतिक चेतना के प्रति जागरुक, यथार्थ के पक्षधर एवं मानवीय दृष्टिकोण के कवि के रूप में अपनी विशिष्ट रचनात्मक पहचान बनाते हैं; वहीं उनकी सपाटबयानी, व्यंग्यात्मकता, सरल शब्दों में भावाभिव्यक्ति, गद्य कविता की निरूपत्ति उन्हें समकालीन कवियों में विशिष्ट स्थान निर्धारित कराती है।
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