गीतिकाव्य से आप क्या समझते हैं ?
गीतिकाव्य से आप क्या समझते हैं (Geeti Kavya Se Aap Kya Samajhte Hain): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत गीतिकाव्य पर सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।
गीतिकाव्य से आप क्या समझते हैं ?
अंग्रेजी के लिरिक (Lyric) शब्द के लिए हिंदी में गीत, प्रगीत या ‘गीतिकाव्य (Geeti Kavya)’ शब्द प्रयुक्त होते हैं। ग्रीस में ‘लायर’ नामक वाद्ययंत्र पर गाये जाने वाले गीतों को ‘लिरिक’ कहा जाता था परन्तु कालांतर में संपूर्ण गेय काव्य को ‘लिरिक’ (Lyric) कहा जाने लगा। गीतिकाव्य गेय काव्य है, जिसमें गेयता, भाव-प्रवणता, आत्माभिव्यक्ति, रागात्मक अन्विति, कोमलकांत पदावली, सौंदर्यमयी कल्पना इत्यादि तत्त्व प्रमुखता से विद्यमान होते हैं।
यह भावावेशमयी स्थिति से उत्पन्न होती है। वर्ड्सवर्थ जब कविता को Spontaneous overflow of powerfull feelings कहते हैं, तो उनका संकेत ‘गीति’ की ओर होता है। ‘वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान’ यह पंक्ति देखें या अंग्रेजी कवि शैले की पंक्ति (Our sweetest songs are those that tell us the saddest thought) तो स्पष्ट होता है कि गीति का आधार कोमल संवेग या भाव है, जो हर्ष- विषाद के आवेश से संबंध रखता है।
महादेवी वर्मा ने लिखा है कि – “सुख- दुःख की भावावेशमयी अवस्था विशेषकर गिने हुए शब्दों में स्वर-साधना के उपयुक्त चित्रण कर देना ही गीत है।”
गीतिकाव्य के तत्त्व –
1. वैयक्तिकता – गीति आत्माभिव्यक्ति अथवा वैयक्तिक अनुभूतियों का सहज स्वाभाविक प्रकाशन है।
2. भाव प्रवणता – यह गीति काव्य की आत्मा है।
3. गीति स्वतः पूर्ण रचना है। अतः, भावान्विति गीति काव्य का प्रधान तत्त्व है।
4. गीति अनिवार्यतः गेय होती है। अतः, ‘गेयता’ इसका एक अनिवार्य तत्त्व है। गेय होने के कारण ही उसे गीति कहा जाता है।
5. गीति का भाव लालित्य और भावातिरेक उसकी शैली पर निर्भर करता है। अतः, कोमल सरस पदावली गीतिकाव्य का एक मुख्य तत्त्व है।
6. अन्य तत्त्व – संक्षिप्तता, प्रवाहमयता, अनुकूल भाषा-शैली इत्यादि।
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