भारतेंदु युगीन काव्य की विशेषताएँ(Bharatendu Yugin Kavya ki Visheshtaen): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत भारतेंदु युगीन काव्य की विशेषताओं पर सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।
भारतेंदु युगीन काव्य की विशेषताएँ
हिंदी-साहित्येतिहास में 1850 ई. से 1900 ई. तक का काल ‘भारतेन्दु काल’ है। समकालीन साहित्य पर भारतेन्दु की बहुमुखी प्रतिभा की जबरदस्त छाप और साहित्य-क्षेत्र में उनके कुशल नेतृत्व प्रदान करने के कारण 1850 से 1900 ई. तक का युग भारतेन्दु-युग कहलाया, जो उपयुक्त ही था।
भारतेंदु युग के कवि – भारतेन्दु, प्रेमघन, अंबिकादत्त व्यास, राजा लक्ष्मण सिंह, तोताराम, सीताराम भूप, मुरारिदान इत्यादि भारतेन्दु-युग के प्रमुख हस्ताक्षर थे।
1. देशभक्ति
अंग्रेजी राज्य के अधीन रहते हुए भी भारतेन्दुयुगीन कवियों ने देश और जाति के अतीत का गौरवगान, वर्तमान हीनावस्था पर क्षोभ, उज्ज्वल भविष्य के लिए उद्बोधन जो उस समय देशभक्ति भावना के अन्तर्गत आते थे, का बड़ी प्रमुखता के साथ चित्रण किया।
(i) कहाँ करुणानिधि केशव सोए
जागत नाहि अनेक जतन करि भारतवासी रोए।
(ii) हाय पंचनद! हा पानीपत! अजहुँ रहे तुम धरनि बिराजत
हाय चित्तौड़, निलज तू भारी, अजहुँ खरौ भारतहिं मंझारी।।
2. राजभक्ति
‘देशभक्ति के साथ राजभक्ति का प्रकाशन’ भारतेन्दुयुगीन काव्य की मुख्य विशेषता थी। सन् 1885 ई. में महारानी विक्टोरिया के घोषणा पत्रों द्वारा देश में आमूल सुधार हुए तो तयुगीन साहित्यकारों ने तत्कालीन शासकों के प्रति अभिव्यक्ति की।
यथा –
(क) अंगरेज राज सुख साज सब भारी। (भारतेन्दु)
(ख) राजभक्ति भारत सरिस और ठौर कहुँ नाहिं। (अंबिकादत्त व्यास)
(ग) जयति राजेश्वरी जय-जय परमेश।
3. जन साहित्य
भारतेन्दुयुगीन कवियों ने पहली बार निर्धनता, बुभक्षा, अकाल, महंगाई, टैक्स, आलस्य, बालविवाह, बहुविवाह, विधवा-विवाह निषेध, अशिक्षा, अज्ञानता, पुलिस, अत्याचार, बुराई इत्यादि का चित्रण कर जन साहित्य प्रस्तुत किया। भारतेन्दु-युग के साहित्यकार यथार्थवादी थे जिनका उद्देश्य सुधारवाद से प्रेरित था।
‘’डफ बाज्यो भरत भिखारी को।
बिन धन अन्न लोग सब व्याकुल भई कठिन विपत नर नारी को।‘’
4. अन्य विशेषताएँ
मातृभाषा हिन्दी का उत्थान (निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति के मूल), हास्य-व्यंग्य (चूरन पुलिसवाले खाते, कानून सब हजम कर जाते) काव्यानुवाद (रघुवंश, मेघदूत, हरमिट, डिजरटेंड विलेज इत्यादि ग्रंथों का अनुवाद) इत्यादि भारतेन्दुयुगीन काव्य की अन्य मुख्य विशेषताएँ थीं। भारतेन्दुयुगीन कवियों की भाषा ब्रजभाषा थी किंतु खड़ीबोली का प्रयोग भी प्रारंभ हुआ।
भारतेन्दुयुगीन काव्य का स्वरूप मुक्तक था। आल्हा, लावनी, कजली, ठुमरी इत्यादि नए छंदों का प्रयोग हुआ। लोकगीत भी लिखे गये।
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