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पश्चिमी हिंदी की बोलियाँ : वर्गीकरण

पश्चिमी हिंदी की बोलियाँ (Paschimi Hindi Ki Boliyan): आज के आर्टिकल में हम पश्चिमी हिंदी की बोलियों के बारे में जानकारी शेयर करेंगे।

पश्चिमी हिंदी की बोलियाँ – Paschimi Hindi Ki Boliyan

1. खड़ी बोली

खड़ी बोली शब्द का प्रयोग दो अर्थों में होता है- (i) साहित्यिक हिंदी खड़ी बोली के अर्थ में और (ii) दिल्ली मेरठ के आस-पास की लोकबोली के अर्थ में।

यहाँ दूसरे अर्थ में ही इस शब्द का प्रयोग किया जा रहा है। कुरु जनपद की बोली होने के कारण राहुल सांकृत्यायन ने इसे ‘कौरवी’ कहा। खड़ी बोली में ‘खड़ी’ शब्द विवादास्पद है। ने ‘खड़ी का अर्थ ‘खरी’ (Pure) अर्थात् शुद्ध माना है तो दूसरों ने खड़ी कुछ लोगों (Standing)। कुछ लोगों ने इसका संबंध खड़ी बोली में अधिकता से प्रयुक्त पाई (1) (गया बड़ा, का) तथा उसके ध्वन्यात्मक प्रभाव कर्कशता से जोड़ा है। यों अभी तक इस प्रश्न का उत्तर अनुत्तरित है।

क्षेत्र – देहरादून का मैदानी भाग, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, दिल्ली का कुछ भाग, बिजनौर, रामपुर तथा मुरादाबाद।

प्रमुख विशेषताएँ – आकारांतता (घोड़ा), न का ण (अपना, राणी), ल का क (काला, नीला), दीर्घ स्वर के बाद मूल व्यंजन के स्थान पर द्वित्व व्यंजन (बेटा, बापू, रोही), महाप्राण के पूर्व इसी स्थित में अल्पप्राण का आगम (देक्खा, भूक्खा) ।

2. ब्रजभाषा

ब्रज का पुराना अर्थ – पशुओं या गौओं का समूह या ‘चारागाह’ है। पशुपालन के प्राधान्य के कारण यह क्षेत्र कदाचित् ब्रज कहलाया और इसी आधार पर इसकी बोली ‘ब्रजभाषा’ अथवा ‘ब्रजी’ कही जाती है। सूर, तुलसी, नंददास, रहीम, रसखान, बिहारी, देव, रत्नाकर इसके मुख्य कवि थे।

क्षेत्र – मथुरा, आगरा, अलीगढ़, धौलपुर, मैनपुरी, एटा, बदायूँ, बरेली तथा आस-पास का क्षेत्र।

प्रमुख विशेषताएँ – खड़ी बोली आकारांतता के स्थान पर ‘ओकारांतता’ (घोरो, भलो, बडो), व्यंजनांत के स्थान पर उकारांत (सबु, मालु) ने के स्थान पर नै, को का कूं, पर का पै, से का सों।

3. हरियाणवी

क्षेत्र – मोटे रूप से हरियाणा, पंजाब का कुछ भाग, दिल्ली का देहाती (पश्चिमी) भाग।

प्रमुख विशेषताएँ – एक व्यंजन के स्थान पर द्वित्व (बब्बू, भीत्तर), न का ण (होणा); ल का ळ (काळा), ड़ का ड (घड़ा), सहायक क्रिया हूं, है, हैं, हो के स्थान पर सूं, सै, सैं।

4. बुंदेली

बुंदेले राजपूतों के कारण मध्यप्रदेश तथा उत्तरप्रदेश की सीमा रेखा के झाँसी, छतरपुर, ओड़छा, सागर, हमीरपुर, होशंगाबाद तथा आस-पास के भागों को बुंदेलखंड कहते हैं। यहाँ की बोली बुंदेली या बुंदेलखंडी है।

प्रमुख विशेषताएँ – अन्त्य अल्प्राणीकरण (भूक, दूद), च का स प्रयोग, यथा—सांचे (सांसे), स का छ (सीढी—छीड़ी), कर्म, संप्रदान ‘को’ के स्थान पर खों, खां, खे इत्यादि।

5. कन्नौजी

कन्नौज इस बोली का प्रमुख केंद्र है। अतः इसका नाम कन्नौजी पड़ा।

क्षेत्र – इटावा, फर्रुखाबाद, शाहजहाँपुर, हरदोई, पीलीभीत।

प्रमुख विशेषताएँ – ओकारांतता (हमारो), उकारांतता (खातु, सबु), स्वार्थ प्रत्यय ‘इया’ (जिभिया, छोकरिया) औ का अऊ (कौन-कउन), बहुवचन के लिए ह्वार (हम ह्वार—हम लोग) इत्यादि।

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