अज्ञेय के काव्य की विशेषताएँ
अज्ञेय के काव्य की विशेषताएँ(Agyeya Ke Kavya Ki Visheshtaen): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत अज्ञेय के काव्य की विशेषताओं पर सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।
अज्ञेय के काव्य की विशेषताएँ
‘भग्नदूत’ और ‘चिन्ता’ की छायावादी कविताओं से अपनी काव्य- यात्रा प्रारम्भ करने वाले सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ प्रयोगवाद और नयी कविता के प्रवर्तक है। इनकी कविता मूलतः व्यक्तिवादी है; इसलिए इन्हें ‘व्यक्तिवादी कवि’ भी माना जाता है। अज्ञेय की काव्य-रचनाओं को इस प्रकार देखा जा सकता है –
1. काव्य – ‘भग्नदूत’, ‘चिन्ता’, ‘इत्यलम’, ‘सागर मुद्रा’, ‘बावरा अहेरी’, ‘इन्द्रधनुष’, ’रौंदे हुये’, ‘आँगन के पार द्वार, ’हरी घास पर क्षण भर’, ‘कितनी नावों में कितनी बार’।
2. सम्पादन – तार सप्तक प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ।
अज्ञेय के काव्य की मुख्य विशेषतायें (Agyeya ke Kavya ki Visheshtaen) इस प्रकार हैं –
1. प्रणयानुभूति –
अज्ञेय के काव्य का शुभारम्भ प्रेम की टीस, चुभन, वेदना और छटपटाहट के साथ हुआ है। अज्ञेय के काव्य में प्रारम्भ से लेकर अन्त तक प्रेमानुभूति की अजस्र धारा प्रवाहित हुई है। अज्ञेय की प्रेमानुभूति में कर्म और भावना, प्रेम और वय तथा प्रेम और कामवाशना (Sex) का द्वन्द है। अज्ञेय के काव्य में प्रेमानुभूति के विविध रूप दिखाई देते हैं। जैसे –
1. तुम्हारी देह,
मुझको कनक चम्पे की कली है।
दूर से ही,
स्मरण में भी गंध देती है।
2. पा न सकने पर तुझे संसार सूना हो गया है।
विरह के आघात से प्रिये!
प्यार दूना हो गया है।
2. प्राकृतिक सौन्दर्य –
अज्ञेय सौन्दर्यानुभूति के कवि हैं। उनके काव्य में प्रकृति-सौन्दर्य की छटा अत्यन्त मनोहारिणी बन पड़ी है। उन्होंने प्रकृति का (1) आलम्बन (2) उद्दीपन (3) आलंकारिक (4) रहस्यात्मक (5) प्रतीकात्मक (6) बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव (7) मानवीकरण इत्यादि विविध रूपों में वर्णन किया है। उदाहरण देखें –
1. तुम्हारे नैन
पहले भोर की दो ओस बूँदें हैं
मछली ज्यायेति मय
भीतर दृवित। (आलंकारिक रूप)
2. दो पंखुरियाँ
झरी लाल गुलाब की, तकती प्यास
ओंठ ज्यों ओंठों तले। (बिम्ब-प्रतिबिम्ब के रूप में)
3. क्षणवाद –
अज्ञेय नयी कविता के प्रतिनिधि कवि हैं; जिनके काव्य में क्षण की महत्ता प्रतिपादित हुई है। अज्ञेय का सम्पूर्ण काव्य क्षणवाद, भोगवाद और दुःखवाद की प्रवृत्तियों का सुन्दर उदाहरण है। कवि का क्षणवादी दृष्टिकोण ही उसे भोगवाद की ओर ले जाता है।
उदाहरणार्थ –
और सब समय पराया है
बस उतना क्षण अपना
तुम्हारी पलकों का कँपना।
4. जिजीविषा –
कवि अज्ञेय की कविताओं में जिजीविषा अर्थात् ‘जीवित रहने की इच्छा’ की तीव्र एवं मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है। सोन मछली, दाना दे, चितेरे, जीवन की छाया, तैर रहा सागर, मछलियाँ इत्यादि अज्ञेय की दर्जनों ऐसी कवितायें हैं, जिनमें जिजीविषा की भावना अभिव्यक्त हुई है। जैसे –
1. बना दे चितेरे
मेरे लिए एक चित्र बना दे।
2. सागर आँक कर
एक मछली हुई मछली।
5. व्यक्तिनिष्ठा –
कवि अज्ञेय की कविताओं में सबसे अधिक व्यक्तिनिष्ठा की प्रवृत्ति दिखाई देती है। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि कवि अज्ञेय निजता के कवि है। व्यक्ति निष्ठा का उदाहरण देखें –
”मैं कवि हूँ
दृष्टा, उन्मेष्टा
संधाता
मर्मवाद।”
6. क्रांति की भावना –
अज्ञेय जी ने अपने काव्य में एक ओर असमानता और विषमता के प्रति आक्रोश, क्षोभ, घृणा इत्यादि का भाव व्यक्त किया है तो दूसरी ओर इस असमानता और विषमता को मिटाने के लिए रक्तमयी क्रांति का भी आह्वान किया है। देखें –
हमने न्याय नहीं पाया है, हम ज्वाला से न्याय करेंगे,
धर्म हमारा नष्ट हो गया, अग्नि धर्म हम हृदय करेंगे।
अज्ञेय जी आर्थिक विषमता के अन्धकार को मिटाकर समानता का आलोक प्राप्त करने के लिए कविगण से कहते हैं कि –
कवि एक बार फिर गा दो
एक बार इस अन्धकार में फिर आलोक दिखा दो।
7. आध्यात्मिकता –
अज्ञेय जी ने कबीर की भाँति आत्मा एवं परमात्मा के विवाद का भी चित्रण अपने काव्य में किया है। जैसे –
अरी! ओ आत्मा री
कन्या भोली कँवारी
महा शून्य के साथ भाँवरे तेरी रची गयी।
अज्ञेय भी परमात्मा को अगोचर, महाशून्य, महामौन, अनाप्त एवं शब्दहीन मानते हैं।
8. देशप्रेम –
अज्ञेय का कवि हृदय अपने देश के कण-कण में रमा हुआ है। उन्हें इस देश की डगर-डगर से प्यार है। गाँव-गाँव में उनकी भाषा रमती है। शहर-शहर में उनके विचार मंडराते हैं। झोंपड़ी से लेकर हवेली तक वे अपने देश से परिचित हैं। निम्नांकित व्यंग्य में उन्होंने देश की स्थिति की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत की है –
इन्हीं तृण फूस छप्पर से
ढँके ढुलमुल गवाँर
झोंपड़ों में ही हमारा देश बसता है
सभ्यता का भूत होता है।
9. भाषा-शैली –
भाषा के क्षेत्र में अज्ञेय जी ने कई समर्थ प्रयोग किये हैं। नये विचारों को प्रस्तुत करने के लिए उपयुक्त शब्द शिल्प और कुशल वाक्य-विन्यास उनकी हिन्दी-साहित्य को महत्त्वपूर्ण देन हैं। उनकी भाषा शुद्ध साहित्यिक परिनिष्ठित हिन्दी है।
अज्ञेय जी ने लोक प्रचलित शब्दों और उनके प्रयोगों को अपनी कविताओं में स्थान दिया है। उन्होंने गीत के लिए लोकगीत की तकनीक अपनाकर उसे नयारूप प्रदान किया है।
अज्ञेय जी ने अपने काव्य में नये प्रस्तुत विधान, नये प्रतीक और नये बिम्ब को गढ़ा है। उनके काव्य में द्वीप, मछली और सागर इत्यादि प्रतीकों का सार्थक प्रयोग हुआ है। अज्ञेय जी ने यमक, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण, विरोधाभास इत्यादि अलंकारों का सुन्दर प्रयोग किया है। इन्होंने अपनी कवितायें मात्रिक छंदों व वर्णिक छंदों के साथ-साथ मुक्त छंद में भी रची है; जिनमें लय, स्वर और गति का सुन्दर समावेश मिलता है। कुल मिलाकर, अज्ञेय जी का भाव-पक्ष जितना समर्थ एवं सम्पन्न है; उतना ही कला पक्ष भी।
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