UGC NET HINDI UNIT 8 PDF – NTA JRF Hindi Sahitya | इकाई 8 हिंदी नाटक

आज के आर्टिकल में हम आपको NTA UGC  द्वारा आयोजित NET/JRF के अंतर्गत हिंदी विषय की इकाई 8  हिंदी नाटक(UGC NET HINDI UNIT 8 PDF) के बारे में जानकारी शेयर कर रहें है

UGC NET HINDI UNIT 8 PDF – हिंदी नाटक

हिंदी नाटक

1. अंधेर नगरी, भारत दुर्दशा (भारतेन्दु हरिश्चंद्र)
2. चंद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, धु्रवस्वामिनी (जयशंकर प्रसाद)
3. अंधायुग (धर्मवीर भारती)
4. सिंदूर की होली (लक्ष्मीनारायण लाल)
5. आधे-अधूरे, आषाढ़ का एक दिन (मोहन राकेश)
6. आगरा बाजार (हबीब तनवीर)
7. बकरी (सर्वेश्वरदयाल सक्सेना)
8. एक और द्रोणाचार्य (शंकर शेष)
9. अंजो दीदी (उपेन्द्रनाथ अश्क)
10. महाभोज (मन्नू भंडारी)

NET JRF HINDI PDF NOTES

UGC NET HINDI UNIT 9 PDF – NTA JRF Hindi Sahitya | इकाई 9 हिंदी निबंध

आज के आर्टिकल में हम आपको NTA UGC  द्वारा आयोजित NET/JRF के अंतर्गत हिंदी विषय की इकाई 9  हिंदी निबंध(UGC NET HINDI UNIT 9 PDF) के बारे में जानकारी शेयर कर रहें है

UGC NET HINDI UNIT 9 PDF – हिंदी निबंध

हिंदी निबंध

1. दिल्ली दरबार दर्पण, भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है (भारतेंदु हरिश्चंद्र)
2. शिवमूर्ति (प्रताप नारायण मिश्र)
3. शिवशंभु के चिट्ठे (बालमुकुंद गुप्त)
4. कविता क्या है (रामचंद्र शुक्ल)
5. नाखून क्यों बढ़ते है (हजारीप्रसाद द्विवेदी)
6. मेरे राम का मुकुट भीग रहा है (विद्यानिवास मिश्र)
7. मजदूरी और प्रेम (अध्यापक पूर्ण सिंह)
8. उत्तराफाल्गुनी के आस-पास (कुबेरनाथ राय)
9. उठ जाग मुसाफिर (विवेकी राय)
10. संस्कृति और सौंदर्य (नामवर सिंह)

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UGC NET Hindi Paper UNIT 10

UGC NET HINDI UNIT 10 PDF – NTA JRF Hindi Sahitya | इकाई 10 आत्मकथा, जीवनी तथा अन्य गद्य विधाएँ

आज के आर्टिकल में हम आपको NTA UGC  द्वारा आयोजित NET/JRF के अंतर्गत हिंदी विषय की इकाई 10  अन्य गद्य विधाएँ(UGC NET HINDI UNIT 10 PDF) के बारे में जानकारी शेयर कर रहें है

UGC NET HINDI UNIT 10 PDF – अन्य गद्य विधाएँ

अन्य गद्य विधाएँ

1. माटी की मूरतें (रामवृक्ष बेनीपुरी)
2. ठकुरी बाबा (महादेवी वर्मा)
3. मुर्दहिया (तुलसीराम)
4. प्रेमचंद घर में (शिवरानी देवी)
5. एक कहानी यह भी (मन्नू भंडारी)
6. आवारा मसीहा (विष्णु प्रभाकर)
7. क्या भूलूँ क्या याद करूँ (हरिवंश राय बच्चन)
8. आपहुदरी (रमणिका गुप्ता)
9. भोलाराम का जीव (हरिशंकर परसाई)
10. जामुन का पेड़ (कृष्ण चंदर)
11. संस्कृति के चार अध्याय (रामधारी सिंह दिनकर)
12. एक साहित्यिक की डायरी (मुक्तिबोध)
13. मेरी तिब्बत यात्रा (राहुल सांकृत्यायन)
14. अरे यायावर रहेगा याद? (अज्ञेय)

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प्रयोगवाद किसे कहते हैं ?

प्रयोगवाद(Prayogvad): आज के आर्टिकल में हम हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के अन्तर्गत प्रयोगवाद पर सम्पूर्ण जानकारी शेयर करेंगे।

प्रयोगवाद किसे कहते हैं – Prayogvad Kise Kahte Hai

1943 ई. में प्रगतिवाद की अतिशय ‘सपाटबयानी’ और सीधे जीवन समस्याओं के चित्रण की एकरसता के विपरीत नये प्रयोगों का आंदोलन चला और प्रयोगवाद का सूत्रपात यहीं से हुआ। 1943 ई. में ‘अज्ञेय’ के संपादन में ‘तारसप्तक प्रथम’ के प्रकाशन के साथ ही नए प्रयोग की ओर कवि विशेष रूप से उन्मुख हुए। प्रयोगवाद का समय 1943 से 1951 ई. तक माना जाता है।

इन कवियों का काव्य के प्रति एक अन्वेषी का दृष्टिकोण था। इन्होंने नूतनता की खोज के लिए केवल की घोषणा की थी इसलिए इसे ‘प्रयोगवाद’ कहा गया। हालांकि इसका विरोध भी होता रहा।

दूसरा सप्तक (1951 ई.) में प्रकाशन के साथ ही ‘अज्ञेय’ ने उस समय की कविता को प्रयोगवाद न कहकर ‘नई कविता’ कहा – “प्रयोग का कोई वाद नहीं है, हम वादी नहीं रहे, नहीं हैं।” इस प्रकार प्रयोगवाद ही संतुलन की खोज में नई कविता हो जाता है। दूसरे शब्दों में प्रयोगवादी कविता का स्वाभाविक विकास नई कविता है।

प्रयोगवाद के कवि और उनकी रचनाएँ

कवि रचनाएँ
अज्ञेय भग्नदूत, चिंता, इत्यलम् ‘हरी घास पर क्षणभर, बावरा, अहेरी
भवानी प्रसाद मिश्र गीतफरोश
गिरिजा कुमार माथुर मंजीर, नाश और निर्माण, धूप के धान
धर्मवीर भारती ठंडा लोहा, अंधा युग।
नरेश कुमार मेहता संशय की एक रात।

इसके अतिरिक्त अन्य कवि नेमिचंद्र जैन, भारत भूषण अग्रवाल, शमशेर बहादुर सिंह इत्यादि है।

प्रयोगवाद की विशेषताएँ

1. अहंवाद – किंतु हम हैं नदी के द्वीप,
हम धारा नहीं हैं। (अज्ञेय)

2. दुःख का महत्त्व स्वीकार्य – दुःख सबको माँजता है।
चाहे वह स्वयं को मुक्ति देना न जाने किंतु जिनको माँजता है उन्हें यह सीख देता है कि सबको मुक्त रखें। (अज्ञेय)

3. यथार्थ का आग्रह (प्रकृति – चाँदनी)
वंचना है चाँदनी
झूठ वह आकाश का निरवधि गहन विस्तार (अज्ञेय)।

4. निराशावादिता –
मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ, लेकिन मुझे फेंको मत। (धर्मवीर भारती)

5. कलापक्ष – प्रयोगवादी कवियों की भाषा-शैली हिंदीनिष्ठ थी, जिनमें आंचलिक शब्दों का प्रयोग भी समाहित है। छायावादी काव्य प्रायः छंदोबद्ध है; प्रयोगवादी काव्य निर्बंध। छायावाद तुकांत है; प्रयोगवाद अतुकांत। छायावाद शब्दलय का आग्रही है; प्रयोगवाद अर्थलय का। प्रयोगवाद में प्रगीत तत्त्व है। प्रयोगवाद में 2 पंक्तियों तक की कविता लिखी गई – घंटारव। घंटारव (शमशेर बहादुर)।
प्रयोगवादी कविता पर ‘साधारणीकरण के अभाव (डॉ. नगेन्द्र, नंददुलारे वाजपेयी इत्यादि) का आरोप लगाया जाता है। शिवदानसिंह ने प्रयोगवाद को पाश्चात्य साहित्य के प्रतीकवाद का अनुकरण मात्र कहा है।

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रीतिमुक्त काव्यधारा किसे कहते हैं ?

रीतिमुक्त काव्यधारा(Ritimukt Kavya Dhara): आज के आर्टिकल में हम गद्य विधा में रीतिमुक्त काव्यधारा पर जानकारी शेयर करेंगे।

रीतिमुक्त काव्यधारा – Ritimukt Kavya Dhara

ऐसा काव्य जो अलंकार, रस, गुण, ध्वनि, नायिका-भेद इत्यादि काव्यशास्त्रीय प्रणाली पर रचा जाये, वह रीतिकाव्य कहलाता है। रीतिकाव्य को 3 भागों में बाँटा गया है –

  • रीतिबद्ध
  • रीतिसिद्ध
  • रीतिमुक्त

रीतिमुक्त काव्य क्या है – Ritimukt Kavya Kya Hai

रीतिमुक्त काव्य का आशय उस काव्य से है, जिसमें कवियों ने लक्षण-ग्रंथ न लिखकर स्वच्छंद रीति से अपने भावों की व्यंजना कीं।

रीतिमुक्त का सीधा-साधा अर्थ भी यही है कि यह धारा रीति-परंपरा के साहित्य बंधनों और रूढ़ियों से सर्वथा मुक्त थी। इसे ही कतिपय विद्धानों ने ‘स्वच्छंद-काव्यधारा’ भी कहा है। स्वच्छंद का अर्थ है – बाह्यबंधनों अर्थात् रीति के बंधनों से मुक्त।

रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवि

  • घनानंद
  • बोधा
  • आलम
  • द्विजदेव
  • ठाकुर
  • शीतल

रीतिमुक्त काव्यधारा की विशेषताएं

(1) आत्मप्रधान एवं व्यक्ति प्रधान काव्य – रीतिमुक्त काव्य आत्मप्रधान एवं व्यक्तिपरक काव्य है। रीतिमुक्त कवियों ने काव्य में रीति, रूढियों का तिरस्कार कर स्वछंद मार्ग अपनाते हुए आत्मपरक दृष्टिकोण की प्रतिष्ठा की। इन्होंने कविता को सायास न मानकर आवेश प्रेम के आवेग का सहज उच्छलन माना। घनानंद कहते हैं कि –

लोग हैं लागि कवित्त बनावत, मोहि तो मेरे कवित्त बनावत’।

(2) स्वछंद प्रेम – रीतिमुक्त कवियों का प्रेम स्वछंद प्रेम है, जो एकनिष्ठ एवं एकांगी है। वह एक ओर भक्ति की सांप्रदायिकता से मुक्त है, तो दूसरी न और समाज के रीति-नियमों से। घनानंद, बोधा, आलम जैसे कवियों ने हिंदू होते हुए भी मुस्लिम युवतियों क्रमशः सुजान, शेख, सुभान से प्रणय संबंध स्थापित कर स्वछंदतावादिता का परिचय दिया। इन्होंने प्रेम की प्रेरणा से राज्याश्रय, समाज, धर्म इत्यादि सभी को ठुकरा दिया। बोधा अपनी प्रेयसी के लिए संसार के समस्त वैभव को ठुकराने की बात कहते हैं –

‘’एक सुभान के आनन पै कुरबान जहाँ लगि रूप जहाँ को।‘’

प्रेम की इस अनन्यता के कारण रीतिमुक्त कवियों के प्रेम में कोरी रसिकता, भावुकता, कामुकता इत्यादि न होकर संघर्ष, त्याग एवं साहस की भावना है।

(3) रीतिमुक्त कवियों का प्रेम व्यथाप्रधान है। यहाँ संयोग में भी वियोग पीछा नहीं छोड़ता है –

‘’यह कैसी संयोग न बुझि न परै कि। वियोग न क्यों हू बिछोहत है।‘’

इस प्रेम की पीर को समझने के लिए हृदय की आँखें चाहिए –

‘’समुझे कविता घनानंद की हिय आँखिन नेह की पीर तकी।‘’

(4) नारी के प्रति अत्यंत सम्मानपूर्ण दृष्टिकोण एवं परिष्कृत रुचि का परिचय रीतिमुक्त कवियों ने दिया है –

‘’अंग-अंग तरंग उठे द्युति की, परि है मनो रूप अबै घट च्वै।‘’ (घनानंद)

(5) रीतिमुक्त काव्य भावप्रधान अधिक है, रूपप्रधान कम। इनकी काव्य शैली पर जानबूझकर अलंकारों का जामा नहीं पहनाया गया है। इनकी भाषा प्रौढ़ ब्रज है और शैली मुक्तक है।

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